947 भारत-पाक युद्ध, मिलिए कश्मीर के रक्षकों से


1947 में आजादी के कुछ महीनों बाद ही पाकिस्तानी कबायलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त कबायलियों की संख्या काफी ज्यादा थी। उनके मुकाबले भारतीय सैनिकों की संख्या और साजोसामान कम थे। उसके बावजूद भारतीय सैनिकों ने डटकर मुकाबला किया और आखिरकार पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। आइए उस जंग के भारतीय नायकों के बारे में आज बताते हैं...21 अक्टूबर 1947 को कबायलियों का कश्मीर पर हमला हुआ26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के भारत में विलय के लिए राजी हुए राजा हरि सिंहभारतीय सेना के पहुंचने तक ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने कबायलियों को रोके रखासाल 1947 त्रासदियों से भरा रहा है। सदी की सबसे बड़ी त्रासदी देश का विभाजन थी। अभी विभाजन का दर्द कम भी नहीं हुआ था कि उसी बीच 21 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबायलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। हमलावर कबायलियों को पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल था। पाकिस्तान के हमले को देखते हुए कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह ने भारत की मदद मांगी। भारत ने मदद के लिए विलय की शर्त रखी थी। राजा हरि सिंह कबायली हमले से कश्मीर को बचाने की खातिर कश्मीर के भारत में विलय को तैयार हो गए। विलय के दस्तावेज पर समझौता होने के बाद भारत ने पाकिस्तानी कबायलियों को खदेड़ने के लिए कश्मीर सेना भेजी। आइए आज आपको उनलोगों के बारे में बताते हैं जिन्होंने कश्मीर को कबायलियों से बचाने में अहम भूमिका निभाई....ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह जम्मू-कश्मीर की आर्मी के प्रमुख थे। कश्मीर को कबायलियों से बचाने में उनकी भूमिका सबसे अहम रही है। दरअसल जब कबायलियों ने हमला किया तो महाराजा हरि सिंह ने ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह से कबायलियों को रोके रखने का आदेश दिया। करीब 150 जवानों और बहुत ही कम हथियारों की मदद से उन्होंने हजारों पाकिस्तानी हमलावरों को चार दिनों तक रोके रखा। उस दौरान महाराजा हरि सिंह को भारत में कश्मीर के विलय का मौका मिल गया और भारतीय सेना मदद के लिए पहुंच गई।
उन्होंने कबायलियों को रोकने के लिए जिस बहादुरी का परिचय दिया वह बेमिसाल है। दुश्मन की ओर से हो रही गोलाबारी में वह बुरी तरह घायल हो गए थे। इसके बावजूद वह दुश्मन से लड़ते रहे और कबायलियों को रोके रहे। 27 अक्टूबर, 1947 को आखिरकार वह शहीद हो गए। जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच ब्रिगेडियर सिंह को 'कश्मीर का रक्षक' के नाम से जाना जाता है। स्वतंत्र भारत में पहले महावीर चक्र से उनको ही मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।3 नवंबर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को कश्मीर घाटी के बदगाम मोर्चे पर जाने का हुकुम दिया गया। 3 नवंबर को सूर्य की पहली किरण पड़ने से पहले मेजर सोमनाथ बदगाम जा पहुंचे और उत्तरी दिशा में उन्होंने दिन के 11 बजे तक अपनी टुकड़ी तैनात कर दी। तभी दुश्मन की करीब 500 लोगों की सेना ने उनकी टुकड़ी को तीन तरफ से घेरकर हमला किया और भारी गोलाबारी से सोमनाथ के सैनिक हताहत होने लगे।अपनी दक्षता का परिचय देते हुए सोमनाथ ने अपने सैनिकों के साथ गोलियां बरसाते हुए दुश्मन को बढ़ने से रोके रखा। इस दौरान उन्होंने खुद को दुश्मन की गोलीबारी के बीच बराबर खतरे में डाला और कपड़े की पट्टियों की मदद से हवाई जहाज को ठीक लक्ष्य की ओर पहुंचने में मदद की।इस दौरान, सोमनाथ के बहुत से सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और सैनिकों की कमी महसूस की जा रही थी। सोमनाथ के बायें हाथ में चोट थी और उस पर प्लास्टर बंधा था। इसके बावजूद सोमनाथ खुद मैग्जीन में गोलियां भरकर सैनिकों को देते जा रहे थे। तभी एक मोर्टार का निशाना ठीक वहीं पर लगा, जहां सोमनाथ मौजूद थे और इस विस्फोट में ही वो शहीद हो गए। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया। परमवीर चक्र पाने वाले वे प्रथम व्यक्ति हैं।परमवीर चक्र पाने वाले यदुनाथ सिंह चौथे व्यक्ति थे। उनकी हाजिरदिमागी और वीरता की वजह से उनकी चौकी दुश्मनों से सिर्फ एक नहीं बल्कि तीन बार बची। 6 फरवरी 1948 का दिन था। वह तैनधार में एक अग्रिम चौकी की कमान संभाल रहे थे। नौ लोग चौकी की हिफाजत में लगे थे।उसी बीच पाकिस्तानियों ने चौकी पर कब्जे के लिए हमला कर दिया। सिंह ने उस समय वीरता और बेहतरीन नेतृत्व का परिचय दिया। उन्होंने अपनी छोटी सेना का इस्तेमाल ऐसे किया कि दुश्मन कन्फ्यूज हो गए। दुश्मन भाग गए। दुश्मनों ने दोबारा हमला किया। जब उनके सभी जवान घायल हो गए तो एक जख्मी गनर के हाथ से बंदूक ले ली और दुश्मन पर हमला कर दिया। इस बार भी उन्होंने अपनी चौकी बचा ली।पाकिस्तानी हमलावरों ने फिर तीसरी बार हमला किया। अब यदुनाथ अकेले रह गए थे। लेकिन उन्होंने फिर दुश्मन पर हमला किया और उनको कन्फ्यूज कर दिया। दुश्मन भाग गए लेकिन दो गोलियां उनके सिर और छाती में आ लगीं। उसके तुरंत बाद भारत माता का यह वीर सपूत शहीद हो गया।


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