आखिरी विकल्प के तौर पर दी जाने वाली ऐंटीबायॉटिक्स भी हो रही फेल, एम्स में 22 महीने में 10 मरीजों की मौत


एम्स में 2016 से 2017 के बीच मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट इंफेक्शन से पीड़ित 22 में से 10 मरीजों की मौत हो गई और वह भी तब जब उन्हें आखिरी विकल्प के तौर पर यूज होने वाली ऐंटीबायॉटिक्स भी दी गई। आखिर क्या है पूरा मामला, यहां जानें।जनवरी 2016 से अक्टूबर 2017 के बीच एम्स ट्रॉमा सेंटर में करीब 22 मरीज ऐसे थे जो आखिरी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होने वाली ऐंटीबायॉटिक्स कोलिस्टिन पर भी रेस्पॉन्ड नहीं कर रहे थे। ये सभी मरीज, मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट इन्फेक्शन से पीड़ित थे, जो ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया के निमोनिए की वजह से फैलता है। एम्स, सीएमसी वेल्लोर और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के वैज्ञानिकों की तरफ से करवाई गई रिसर्च में यह बात सामने आई कि 22 में से 10 मरीज यानी करीब 45 प्रतिशत की तो अस्पताल में ऐडमिट होने के 15 दिन के अंदर ही मौत हो गई थी। बाकी के 12 मरीजों को बचा तो लिया गया लेकिन करीब 23 दिनों तक उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रहना पड़ा और उन्हें बेहद पावरफुल दवाइयां देनी पड़ीं।कोलिस्टिन, सबसे पहली ऐंटीबायॉटिक्स में से एक है जिसकी खोज 1959 में की गई थी और यह ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया के प्रति बेहद कारगर मानी जाती थी। हालांकि इस दवा के कुछ साइड इफेक्ट्स भी थे जैसे- किडनी को इससे होने वाला नुकसान इसलिए इस दवा का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था और इसकी जगह और ज्यादा सुरक्षित ऐंटीबायॉटिक्स का यूज होने लगा। लेकिन हाल ही में इस दवा को दोबारा इन्ट्रोड्यूस किया गया क्योंकि इन्फेक्शन का इलाज करने में कोई भी नई ऐंटीबायॉटिक सफल नहीं हो पा रही थी।कोलिस्टिन रेजिस्टेंस के 22 मामले चौंकाने वालेक्रिटिकल केयर के एक्सपर्ट डॉ. सुमित रे कहते हैं कि एक ही अस्पताल में 2 साल में कोलिस्टिन रेजिस्टेंस के 22 केस बताते हैं कि यह मामला कितना गंभीर हो चुका है। पहले भी कई बार आईसीयू सेटिंग्स में कोलिस्टिन रेजिस्टेंस के एक-दो मामले सामने आए थे लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मरीजों का सामने आना भारत में बढ़ते मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस की समस्या को दिखाता है और यह बेहद चिंताजनक मामला भी है।एम्स की इस स्टडी में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि सभी 22 मरीज सिर्फ ऐंटीबायॉटिक्स ही नहीं बल्कि कई दूसरी हाई एंड ड्रग्स जैसे- कैरबेपेनम्स, एक्सटेंडेड स्पेक्ट्रम सीफालोस्पोरिन्स और पीनिसिलिन बी लैक्टामेज के प्रति भी रेजिस्टेंट थे। इन्फेक्शन कंट्रोल ऐंड हॉस्पिटल एपिडोमोलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि डॉक्टर्स, माइक्रोबायॉलिजिस्ट और पब्लिक हेल्थ ऑफिशल्स सभी को मिलकर कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि इस मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट ऑर्गैनिज्म को फैलने से रोका जा सके।साधारण इन्फेक्शन को भी रोकना हो जाएगा मुश्किल
इंसानों के साथ-साथ जानवरों में भी ऐंटीबायॉटिक्स का बेतहाशा इस्तेमाल, इन्फेक्शन को रोकने के लिए हेल्थकेयर फसिलिटी की कमी, साफ और सुरक्षित पेय जल की कमी और साफ-सफाई की सुविधाएं न होने की वजह से इस तरह की मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ऐंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस AMR को दुनियाभर के 10 सबसे बड़े खतरों में से एक माना है। WHO ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अगर हर तरह के ऐंटीबायॉटिक्स के यूज को कंट्रोल नहीं किया गया तो इंसानी सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी और एक बार फिर उस सिचुएशन में पहुंच जाएगी जहां निमोनिया, टीबी और गोनिरिया जैसे इन्फेक्शन का इलाज भी नहीं हो पाएगा।वैसे तो भारत सरकार ने ऐंटीबायॉटिक्स के मिसयूज को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिश की है लेकिन देशभर में लोगों द्वारा सेल्फ मेडिकेशन यानी डॉक्टर से पूछे बिना खुद दवा लेकर खाने की परंपरा तेजी से बढ़ी है। कई बार डॉक्टर भी हद से ज्यादा ऐंटीबायॉटिक प्रिस्क्राइब कर देते हैं। उदाहरण के लिए- कई बार डॉक्टर सीजनल सर्दी खांसी के इलाज के लिए भी ऐंटीबायॉटिक प्रिस्क्राइब कर देते हैं जबकी यह बीमारी तो वायरस से होती है।


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