अयोध्या विवाद: 'सुप्रीम' फैसले के बाद भी आसान नहीं होगी राह


अखिल भारत हिंदू महासभा में भी आपसी संघर्ष है। कुल छह धड़े हैं जो खुद को हिंदू महासभा का अगुआ बताते हैं, लेकिन इनमें सिर्फ चार ही अयोध्या भूमि विवाद में याचिकाकर्ता हैं।अखिल भारत हिंदू महासभा में भी आपसी संघर्ष है। कुल छह धड़े हैं जो खुद को हिंदू महासभा का अगुआ बताते हैं, लेकिन इनमें सिर्फ चार ही अयोध्या भूमि विवाद में याचिकाकर्ता हैं।अयोध्या में विवादित परिसर के मालिकाना हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और याचिकाकर्ताओं और जनता को शीर्ष अदालत के फैसला का इंतजार है। इसी के साथ यह कयासबाजी भी शुरू हो गई है कि अगर फैसला हिंदुओं के पक्ष में आया तो यह आगे की राह क्या होगी। इस कयासबाजी का आधार, वह बयान है जो निर्मोही अखाड़ा, अयोध्या की अगुआई करने वाले दिनेंद्र दास की तरफ से आया। उन्होंने साफ कहा है कि वह ही इस मामले के असली पक्षकार हैं और जमीन पर उनका ही अधिकार है, जबकि मामले में हिंदू पक्ष में 12 पार्टियां हैं।निर्मोही अखाड़ा खुद को भूमि का असली स्वामी बताता है। दावा है कि अखाड़े ने इस मामले में पहला केस 1885 में दायर कर विवादित परिसर के बाहरी हिस्से में मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था। केस में कहा गया है कि निर्मोही अखाड़ा बाहरी हिस्से में राम चबूतरे पर पूजा करता रहा है, लेकिन वह कभी भीतरी प्रांगण में नहीं गए।निर्मोही अखाड़े में ही दो धड़ेहालांकि, अब निर्मोही अखाड़ा भीतरी हिस्से पर भी दावा कर रहा है। निर्मोही अखाड़े पर विवादित ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रखने का आपराधिक मुकदमा भी 1949 में दर्ज हुआ था। इस मामले की सुनवाई के बाद जिला मैजिस्ट्रेट ने 1949 में ही यह जगह सरकार के अधीन कर दी थी। अब गौर करने वाली बात यह है कि खुद को असली दावेदार बताने वाले निर्मोही अखाड़े में ही दो धड़े हैं और अब दोनों ही दावा कर रहे हैं।एक है राम चबूतरे पर पूजा करने वाला पंच रामानी निर्मोही अखाड़ा और दूसरा है अयोध्या के एक हनुमान मंदिर की गद्दी पर काबिज निर्मोही निर्वाणी। निर्मोही अखाड़ा, अयोध्या की अगुआई करने वाले दिनेंद्र खुद को मामले का असली पक्षकार बताते हैं जबकि निर्मोही निर्वाणी के प्रमुख धर्मदास ने इस मामले में केस नंबर पांच दायर किया है।र्मदास पर दस्तावेज चुराने का आरोपधर्मदास पर विवाद स्थल से 1982 में दस्तावेज चुराने का भी आरोप है। निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में रामलला विराजमान की तरफ से दायर याचिका का विरोध यह कहते हुए किया था कि वह ही मंदिर के कर्ताधर्ता और केयरटेकर हैं। राम जन्मभूमि न्यास का कोई दावा नहीं बनता।हिंदू महासभा में भी आपसी संघर्ष
अखिल भारत हिंदू महासभा में भी आपसी संघर्ष है। कुल छह धड़े हैं जो खुद को हिंदू महासभा का अगुआ बताते हैं, लेकिन इनमें सिर्फ चार ही अयोध्या भूमि विवाद में याचिकाकर्ता हैं। पहली याचिकाकर्ता हैं राजश्री चौधरी, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री हैं। उनका दावा है कि वे अखिल भारत हिंदू महासभा की असली प्रतिनिधि हैं। वह साफ कहती हैं कि उनका आरएसएस से कुछ लेना देना नहीं है।पढ़ें: रामलला ही नहीं, 6 मंदिरों और 400 परिवारों को भी है 'आजादी का इंतजार'
दूसरे याचिकाकर्ता चंद्र प्रकाश कौशिक हैं, जो हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का दावा करते हैं। माना जाता है कि उनकी नजदीकियां आरएसएस से हैं। हिंदू महासभा की तरफ से तीसरे याचिकाकर्ता हैं स्वामी चक्रपाणि, जिनके बीजेपी और कांग्रेस दोनों से अच्छे रिश्ते माने जाते हैं। चौथे याचिकाकर्ता हैं बाबा नंद किशोर मिश्र, जो खुद को अखिल भारत हिंदू महासभा का प्रमुख बताते हैं। वह बीजेपी के समर्थक हैं।दरअसल अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद की दावेदारी पर फैसले के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया था। सुनवाई के दौरान नंद किशोर मिश्र अपने पदाधिकारी होने का दस्तावेज पेश नहीं कर पाए और उनके खिलाफ कई और जवाबी दावे भी सामने आए।एक-एक कर आते गए पक्षकार
सुप्रीम कोर्ट में चार मामलों पर सुनवाई होनी थी। पहला केस हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विषारद द्वारा 16 जनवरी 1950 को दायर किया गया था। इसमें मांग की गई थी कि उन्हें जन्म भूमि पर देवपूजा की अनुमति दी जाए। दूसरा केस 5 दिसंबर 1950 को परमहंस राम चंद्र दास ने दायर किया था। इस केस में स्वामित्व की अनुमति मांगी गई थी। इस बीच परमहंस चंद्र दास का देहांत हो गया, इसलिए इस केस की सुनवाई नहीं हो रही है। रामचंद्र दास दिगंबर अखाड़ा के सदस्य थे।
तीसरा केस निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुनाथ ने दायर किया था, जिसमें मंदिर प्रबंधन देखने वाले म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन प्रियदत्त राम को हटाकर मंदिर प्रबंधन का जिम्मा उन्हें देने की अपील की गई थी। निर्मोही अखाड़े का न्यास, आरएसएस या विश्व हिंदू परिषद से कुछ लेना देना नहीं है। वहीं, अखाड़ा मामले में बचाव पक्ष के तौर पर न्यास को शामिल करने के खिलाफ भी रहा है।सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पक्षसुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने विषारद की अपील के खिलाफ मामला दायर किया और मस्जिद व कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जे के साथ मूर्तियों को हटाने की भी अपील की। 1989 तक इस मामले में आरएसएस या विश्व हिंदू परिषद की कोई भूमिका नहीं थी। 1989 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज डीएन अग्रवाल, जो विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष थे, उन्होंने केस नंबर पांच दायर कर विवादित भूमि के स्वामित्व का दावा किया और पुरानी इमारत की जगह नई इमारत बनाने की अनुमति मांगी।इसके बाद ही आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद ने इस केस में अपनी भूमिका बनाई। डीएन अग्रवाल 1985 में स्थापित जन्मभूमि न्यास के संस्थापकों में एक थे। अग्रवाल की याचिका में मांग की गई थी कि उन्हें रामलला और रामजन्म भूमि के मित्र के तौर पर पेश होने की अनुमति दी जाए।


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