बेबी फाए: बच्ची जिसके अंदर धड़क रहा था एक लंगूर का दिल


मेडिकल साइंस के चमत्कारों में से एक बेबी फाए को एक लंगूर का दिल ट्रांसप्लांट करना था। आइए आज आपको यह रोचक कहानी बताते हैं...मेडिकल साइंस कभी कुछ ऐसी चीजों को भी संभव कर दिखाता है जिसकी इंसान उम्मीद भी नहीं कर सकता। इसी तरह का एक चमत्कार किसी जानवर का दिल इंसान में ट्रांसप्लांट करना है। यह चमत्कार 1984 में हुआ था। दरअसल स्टेफनी फाए बोकलेर नाम की एक बच्ची का जन्म 14 अक्टूबर, 1984 को हुआ था जो बेबी फाए के नाम से चर्चित हुइ। उसके दिल का बायां हिस्सा पूरी तरह विकसित नहीं था। इस तरह के बच्चों को करीब दो हफ्ते तक जिंदा रहने की उम्मीद होती है। अब फाए की मां के पास दो ही ऑप्शन था। या तो अस्पताल में या फिर घर में बच्ची को रखकर उसके मरने का इंतजार करती। लेकिन उनके डॉ. बेले के दिमाग में एक और विकल्प था जिसे उन्होंने बखूबी आजमाया।दिल को छोड़कर वैसे फाए की हालत अच्छी थी। हार्ट ट्रांसप्लांट से हालत बेहतर हो सकती थी। लेकिन यह मुश्किल काम था। वैसे तो एक इंसान का दिल दूसरे इंसान में ट्रांसप्लांट होना 1967 में ही शुरू हो गया था लेकिन मुश्किल यह थी कि नवजात को दिल दान कौन करता। ऐसे में बेले के दिमाग में विचार आया कि क्यों न किसी अन्य प्रजाति का हार्ट ट्रांसप्लांट करके देखा जाए। उन्होंने सात साल कैलिफॉर्निया के लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में इसी चीज पर रिसर्च किया था। बेले ने अपने रिसर्च के दौरान भेड़, बकरी और लंगूरों के बीच हार्ट ट्रांसप्लांट किया था। पहली बार 1964 में किसी इंसान को जानवर का दिल लगाया गया था। लेकिन वह सर्जरी सफल नहीं हुई और कुछ घंटे बाद ही मरीज की मौत हो गई। खैर बेले को बेबी फाए पर रिसर्च करने की अनुमति मिल गई।26 अक्टूबर, 1984 को बेबी फाए की तबीयत बिगड़ने लगी थी। मेडिकल टीम ने एक लंगूर का चयन किया और फाए को उसका हार्ट लगाना शुरू किया। फाए का नया दिल धड़कने लगा। इसके बाद बेबी फाए मीडिया की सुर्खियों में आ गई। सैकड़ों लोगों ने बच्ची की सेहत के लिए दुआएं कीं और उसको कार्ड्स, फूल और पैसे भेजे।शुरू में तो ट्रांसप्लांट सफल दिख रहा था लेकिन बाद में बच्ची की तबीयत बिगड़ने लगी। ट्रांसप्लांट के 14 दीनों बाद 16 नवंबर, 1984 को बच्ची की मौत हो गई।


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