जानें टायर वाली मेट्रो के बारे में
- टायर वाली मेट्रो पेरिस, हांगकांग समेत कई देशों में सफलतापूर्वक चल रही है।
- इसके रफ्तार तकरीबन 60 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
- इसे मेट्रोलाइट के नाम से भी जाना जाता है।
- टायर वाली मेट्रो के संचालन में 3 गुना कम यानी 100 करोड़ रुपये प्रति किमी की लागत आती है।
मेट्रो के निर्माण का खर्च अधिक है इसलिए इन शहरों में मेट्रो लाइट की नीति को अपनाया गया। इसके पीछे वजह यह है कि इससे मेट्रो के निर्माण में 30 फीसद खर्च कम हो जाता है।
नई दिल्ली आने वाले दिनों में देश के किसी शहर में टायर वाली (रबड़ युक्त पहिये वाली) मेट्रो चलती नजर आए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। लाइट मेट्रो के बाद अब केंद्र सरकार टायर वाली मेट्रो चलाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए नीति भी तैयार की जा रही है। यह बात ग्रे लाइन पर मेट्रो के उद्घाटन के दौरान केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप सिंह पुरी ने कही।
खर्च आएगा कम
उन्होंने कहा कि मेट्रो बड़े शहरों के लिए सफल सार्वजिनक परिवहन की सुविधा है। देश में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। इससे वर्ष 2030 तक देश की करीब 60 करोड़ आबादी शहरों में होगी। दिल्ली मेट्रो की सफलता के बाद द्वितीय व तृतीय स्तर के शहरों में भी मेट्रो जैसी सुविधाओं की मांग हो रही है। मेट्रो के निर्माण का खर्च अधिक है, इसलिए इन शहरों में मेट्रो लाइट की नीति को अपनाया गया। इसके पीछे वजह यह है कि इससे मेट्रो के निर्माण में 30 फीसद खर्च कम हो जाता है। मेट्रो लाइट के बाद अब मेट्रो ऑन टायर्स नीति पर काम किया जा रहा है। इस तरह के मेट्रो के विकास में खर्च और भी कम हो जाएगा।
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