एक छोटी-सी भूल ने HLL, लिप्टन को 30 साल तक किया परेशान


हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (HLL) और उसकी सहयोगी कंपनी लिप्टन इंडिया लिमिटेड (LIL) के साथ 35 साल पहले (1983-84) कुछ ऐसा हुा कि कंपनी अब तक परेशान है। कंपनी के एक एग्जिक्यूटिव ने लिप्टन इंडिया की एक पेमेंट को बैलेंस शीट में 'लोन ऐंड अडवांसेज' के मद में दिखाया था।राघव ओहरी, नई दिल्लीमशहूर ऐड गुरु जॉन केपल्स ने कहा था, 'अगर आप खराब हेडलाइन देते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने अपनी कॉपी पर कितनी मेहनत की है क्योंकि आपकी कॉपी नहीं पढ़ी जाएगी।' कुछ ऐसा ही हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (HLL) और उसकी सहयोगी कंपनी लिप्टन इंडिया लिमिटेड (LIL) के साथ 35 साल पहले (1983-84) हुआ था, जब कंपनी के एक एग्जिक्यूटिव ने लिप्टन इंडिया की एक पेमेंट को बैलेंस शीट में 'लोन ऐंड अडवांसेज' के मद में दिखाया था।लिप्टन ने 10.38 करोड़ रुपये की रकम HLL को दो वनस्पति मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स चलाने के लिए दी थी। इस राशि को जिस मद में दिखाया गया, उसने दोनों कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं। एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) ने 1990 में दोनों कंपनियों के खिलाफ फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन ऐक्ट (FERA) के तहत मामला दर्ज किया था और इसका कारण कंपनियों की बैलेंस शीट में इसी शीर्षक में दर्ज रकम थी। अब इस गलती को तीन दशक से अधिक बीतने के बाद प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) ट्राइब्यूनल ने कंपनियों पर ED की ओर से लगाई गई 25 लाख रुपये की पेनल्टी को खारिज कर दिया है।ट्राइब्यूनल ने कंपनियों के दो डायरेक्टर्स में से हरेक पर लगाई 5 लाख रुपये की पेनल्टी भी रद्द कर दी है। इनमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के तत्कालीन चेयरमैन ए एस गांगुली शामिल थे। ट्राइब्यूनल ने पिछले महीने अपने ऑर्डर में कहा था कि गांगुली का HLL के प्रतिदिन के कामकाज के साथ संबंध नहीं था।
यह विवाद 1983-84 में HLL और LIL की ओर से लिए गए एक फैसले से जुड़ा है। इसमें HLL के वनस्पति के प्रॉडक्शन और सेल का पूरा बिजनस LIL को ट्रांसफर किया गया था। इसके बाद वनस्पति बनाने वाली चार फैक्टरियां LIL को ट्रांसफर कर दी गई थीं। हालांकि इनमें से दो फैक्टरियां वनस्पति के अलावा अन्य उत्पाद भी बना रही थीं और यह फैसला किया गया कि रॉ मटीरियल इम्पोर्ट करने के लाइसेंस के ट्रांसफर सभी औपचारिकताएं पूरी होने तक HLL ही वनस्पति का प्रॉडक्शन करती रहेगी, लेकिन काम LIL की ओर से किया जाएगा।इसी कारण से LIL ने 10.38 करोड़ रुपये की राशि HLL को ट्रांसफर की थी। इस पेमेंट को कंपनियों के खातों में 'लोन अडवांसेज' के तौर पर दर्ज किया गया था। इसके साथ ही एक नोट भी था जिसमें बताया गया था कि यह पेमेंट एक 'अस्थायी व्यवस्था' के लिए है।ट्राइब्यूनल ने पिछले महीने अपने ऑर्डर में कहा था कि ED ने कंपनी को 'लोन ऐंड अडवांसेज' की एंट्री के आधार पर FERA के तहत नोटिस दिया था, लेकिन ED ने इसके साथ मौजूद नोट को अनदेखा कर दिया जिसमें 'अस्थायी' व्यवस्था के लिए शर्तों की स्पष्ट जानकारी थी। ट्राइब्यूनल ने कहा कि नोट से यह स्पष्ट होता है कि भुगतान को अडवांस के तौर पर देखा जाना चाहिए, लोन नहीं। इसके साथ ही ट्राइब्यूनल ने कहा कि ED की ओर से कंपनी पर पेनल्टी लगाने का कोई मामला नहीं बनता।


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