हालात से लड़कर दूसरों का सहारा बनीं ये महिलाएं बनी सबके लिए मिसाल

हमारे आसपास भी कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से महिलाओं को सशक्त बनाने और समाज को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए ऐसी ही कुछ महिलाओं के प्रयासों पर नजर डालते हैं...


सरोज ठाकुर : बच्चों को शिक्षा, महिलाओं को हुनर दे रहीं 
काशीपुर। स्कूल की नौकरी खत्म होने के बाद काशीपुर की शिक्षिका सरोज ठाकुर मलिन बस्तियों के बच्चों को घर पर पढ़ाकर साक्षर समाज की परिकल्पना साकार कर रही हैं। घर पर जरूरतमंद पांच शिक्षकों को जोड़कर वह उन्हें अपने खर्च पर रोजगार भी दे रही हैं। सुबह सात से दोपहर दो तक स्कूल की ड्यूटी के बाद शाम को बच्चों को शिक्षा और महिलाओं को रोजगार देने का उनका सफर कई वर्षों से जारी है। रामनगर रोड स्थित निजी स्कूल में पढ़ाने वाली खड़कपुर देवीपुरा की सरोज बताती हैं कि जरूरतमंदों की मदद का ख्याल आया तो उन्होंने वर्ष 2013 में एनजीओ बनाया। 2014 में एनजीओ रजिस्टर कराने के बाद वह मलिन बस्तियों के दो हजार बच्चों को शिक्षा से जोड़ चुकी हैं। कुछ बच्चों को सरकारी स्कूलों में भी भर्ती कराया। इसके अलावा सिलाई, कढ़ाई, पार्लर का प्रशिक्षण देकर एक हजार महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ चुकी हैं।


नीलम चतुर्वेदी : पीड़ित महिलाओं की आवाज बनीं
लखनऊ की रहने वाली नीलम चतुर्वेदी 1970 के दशक में एक ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हुईं, लेकिन आज महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों में वह शीर्ष पर हैं। वह न सिर्फ पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाने में अहम रोल अदा करती हैं, बल्कि उनके पुनर्वास के लिए भी कार्य करती हैं। उनके अनेक सेंटर महिलाओं की मदद कर रहे हैं। सरोज को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई बार महिला अधिकारों पर पक्ष रखने का अवसर मिला। उन्हें देश-विदेश में कई सम्मान से नवाजा जा चुका है। वह महिला मंच उत्तर प्रदेश सखी केंद्र की संस्थापिका, नेशनल एलायंस ऑफ वीमेंस आगेर्नाइजेशन, वीमेन पावर कनेक्ट, साउथ एशियंस फॉर ह्यूमन राइट्स, उत्तर प्रदेश वॉलंट्री हेल्थ एसोसिएशन, राष्ट्रीय महिला आयोग में जेंडर स्पेशलिस्ट (2013-2015 तक) और अनेक महिला संगठनों में शामिल रही हैं।


रेखा पांडेय :  दूसरों का पेट भरने के लिए मुहिम चला रहीं
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में रेखा पांडेय के दरवाजे पर पिछले 20 साल से हर शनिवार को भंडारा लगता है। खुद एक औसत परिवार से ताल्लुक रखने वाली रेखा अपने पति रघुनाथ पांडेय के साथ छह दशक पहले बिहार के गोपालगंज जिले से कुशीनगर आईं।  वर्ष 1999 में रेखा और रघुनाथ ने जरूरतमंदों को सप्ताह के प्रत्येक शनिवार को भोजन कराने का निर्णय लिया। भंडारा इतना लोकप्रिय हुआ कि हर शनिवार की सुबह ही दीन-दुखियों की भीड़ जमा होने लगी। वर्ष 2015 में जब रघुनाथ की मौत हुई तो लोगों को लगा कि शायद अब भंडारा बंद हो जाएगा। इसके बाद रेखा ने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो भंडारा नहीं बंद होगा। रेखा खुद सप्ताह के छह दिन संसाधन जुटाती हैं और शनिवार को दीन-दुखियों को भोजन कराती हैं। 20 वर्ष हो चुके हैं भंडारा शुरू हुए, लेकिन एक भी शनिवार को यह भंडारा रुका नहीं है।


सैरी चहल : महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं को लगाए पंख
नई दिल्ली की शैरी चहल 'शीरोज डॉट इन' की संस्थापक हैं। यह एक सोशल एप है, जो महिलाओं को अपनी पसंद-नापसंद, शौक, सोच, विचार और महत्वाकांक्षाओं के आधार पर एक-दूसरे से जुड़ने का विकल्प मुहैया कराता है। महिलाएं इसके जरिये न सिर्फ अपने हुनर का परिचय देने में सफल हो रही हैं, बल्कि उन्हें करियर के नए आयाम छूने और पसंदीदा काम को आय के स्रोत में तब्दील करने में भी मदद मिल रही है।


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