हरियाणा चुनाव: बीजेपी बनाम विपक्ष, जानें किन मुद्दों पर कौन, किस पर कितना भारी


हरियाणा चुनाव में बीजेपी की ताकत मोदी-शाह की जोड़ी तो है ही, लेकिन उससे भी ज्यादा उसे कहीं से मजबूती मिल रही है तो राज्य में विपक्ष का लगभग न के बराबर होना है। अगर कांग्रेस का बुरा हाल है तो दूसरे सबसे प्रमुख इलाकाई दल- इंडियन नैशनल लोकदल का हाल और भी ज्यादा बुरा है।हरियाणा विधानसभा के लिए 21 अक्टूबर को मतदान होने वाले हैंइस चुनाव में कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की हालत भी पस्त दिख रही हैबीजेपी ने हरियाणा चुनाव प्रचार का अजेंडा सेट करती दिख रही हैकांग्रेस समेत तमाम विपक्ष के पास बीजेपी के अजेंडों की काट नहीं दिख रही हैजाट बनाम गैर जाट हरियाणा की सियासत का बहुत पुराना मिजाज रहा हैनई दिल्ली
हरियाणा वह राज्य है जहां की सियासत ने 'आया राम-गया राम' जैसे मुहावरे को जन्म दिया। जहां की सियासत कभी तीन लालों- बंशीलाल, भजनलाल, देवीलाल के इर्द-गिर्द घूमा करती थी। जो जाट पॉलिटिक्स का केन्द्र माना जाता था। हालांकि, वक्त के साथ हरियाणा की सियासी पहचान भी बदलती गई। मजबूत और स्थाई सरकारों का दौर आया। राज्य के तीनों 'लाल परिवार' नेपथ्य में होते गए और जाट पॉलिटिक्स ने भी अपना असर खो दिया। खैर, 90 विधानसभा सीटों वाला यह राज्य इस वक्त चर्चा में इसलिए है कि अगले सोमवार को नई सरकार चुनने के लिए वोट पड़ने हैं। ऐसे में यहां बीजेपी बनाम विपक्ष की त की समीक्षा हो रही है।
विपक्ष की कमजोरी, बीजेपी की ताकतहरियाणा चुनाव में बीजेपी की ताकत मोदी-शाह की जोड़ी तो है ही, लेकिन उससे भी ज्यादा उसे कहीं से मजबूती मिल रही है तो राज्य में विपक्ष का लगभग न के बराबर होना है। अगर कांग्रेस का बुरा हाल है तो दूसरे सबसे प्रमुख इलाकाई दल- इंडियन नैशनल लोकदल का हाल और भी ज्यादा बुरा है। एक वक्त था जब देवी लाल हरियाणा की पॉलिटिक्स के सबसे बड़ा ब्रैंड माने जाते थे। उनके बाद उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीतिक विरासत संभाली लेकिन उनके जेल जाने के बाद का जो घटनाक्रम रहा, उसमें उनकी पार्टी उनके पोतों के बीच बंट गई। पारिवारिक कलह का अंजाम ये हुआ कि इंडियन नैशनल लोकदल दो हिस्सों में बंट गई। दोनों हिस्से इतने कमजोर हैं कि राज्य के चुनाव में उनकी तरफ से बीजेपी को कहीं कोई चुनौती मिलती नहीं दिख रही है।विपक्ष की कमजोरी का फायदा बीजेपी को इस रूप में मिल रहा है कि वह खुद 'अजेंडा सेटर' बन गई है। उसे अपने हक में जो मुद्दा जाता दिख रहा है, उसी पर वह फोकस कर रही है। अनुच्छेद 370 को खत्म करने के मुद्दे को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जोड़कर बीजेपी ने उसे इस तरह चुनाव अभियान के केंद्र में ला दिया है, जहां विपक्ष उस मुद्दे के खिलाफ बोलने की सोच भी नहीं सकता। विपक्ष की इस मजबूरी का बीजेपी जमकर फायदा उठा रही है। तभी बीजेपी की टॉप लीडरशिप चुनावी सभाओं में ललकार रही है कि- 'अगर कांग्रेस को लगता है कि हमने 370 को हटाकर गलत किया तो वो कहे कि जब वह सत्ता में आएगी तो इसे फिर से लागू कर देगी।'पाकिस्तान पर बोले पीएम मोदी- जो ठान लिया तो करके ही रहता हूंक्या बोल रही, क्या छोड़ रही है बीजेपी?
बीजेपी के स्टेट लीडर्स गैस सिलेंडर की आसान उपलब्धता, अंत्योदय योजना और बीबीसी (भर्ती-बदली-सीएलयू) में पारदर्शिता की भी चर्चा अपने भाषणों में कर रहे हैं लेकिन बेरोजगारी, किसानों को लागत से ज्यादा फसलों की कीमत मिलने, सांप्रदायिक सद्भाव जैसे मुद्दों पर जिस शिद्दत से बात होनी चाहिए थी, वह कहीं नहीं हो रही है जबकि ये राज्य के सबसे प्रमुख मुद्दे हैं।स्थानीयता पर राष्ट्रीयता भारीचुनाव प्रचार में स्थानीय मुद्दों के मुकाबले राष्ट्रीय मुद्दों का शोर ज्यादा सुनाई पड़ रहा है। खासतौर पर पाकिस्तान, कश्मीर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक। यहां तक कि जब किसानों को उनके खेतों में पानी देने की बात होती है तो उसमें भी पाकिस्तानी टांका लग जाता है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान जा रहा पानी रोक कर उसे हरियाणा की नहरों में लाया जाएगा।बीजेपी की सफाई, कांग्रेस का आरोपबीजेपी को इसमें कतई कुछ भी गलत नहीं लग रहा। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अनिल जैन ने पिछले हफ्ते एनबीटी को दिए गए इंटरव्यू में कहा था- अगर बॉर्डर्स पर सबसे ज्यादा हरियाणा के जवान शहीद हो रहे हैं तो हरियाणा में पाकिस्तान की भी चर्चा होगी और कश्मीर की भी, इसमें कुछ भी गलत नहीं। उधर, कांग्रेस इसे दूसरे नजरिये से देख रही है। उसका कहना है कि 'बीजेपी की यह चाल है, स्थानीय मुद्दों पर कोई बात न हो, इसलिए वह पाकिस्तान, कश्मीर, तीन तलाक पर बात कर रही है'।राहुल गांधी ने खेली क्रिकेट, जमकर लगाए चौके-छक्केनिष्प्रभावी हो गई बिखरी हुई कांग्रेसहरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई बड़ी चुनौती देती इसलिए नहीं दिख रही कि वह खुद बिखरी हुई है और उसकी लड़ाई बाहर से कहीं ज्यादा अंदर चल रही है। चुनाव के ठीक पहले पार्टी छोड़ने की धमकी देकर हुड्डा ने अपनी शर्त तो मनवा ली लेकिन उसकी कीमत पार्टी को अशोक तंवर को गंवाकर चुकानी पड़ी। हरियाणा जैसे एक छोटे से राज्य में कांग्रेस जितने गुटों-पालों में बंटी है, उतना किसी भी अन्य राज्य में नहीं।जाट बनाम गैर जाट मुद्दा
जाट बनाम गैर जाट हरियाणा की पॉलिटिक्स का बहुत पुराना मिजाज रहा है। यह मुद्दा इस बार कितना असर दिखाता है, यह देखने वाली बात होगी। हरियाणा की पॉलिटिक्स में जाटों का खासा वर्चस्व रहा है लेकिन पिछली बार बीजेपी ने बहुमत मिलने पर किसी जाट लीडर को मुख्यमंत्री बनाने की बजाय गैर जाट नेता मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाने का दांव खेला। यहीं से जाटों के खिलाफ गैर जाटों की गोलबंदी को धार मिली।बीजेपी के लोग खट्टर सरकार की भर्ती-बदली प्रक्रिया में पारदर्शिता को मुद्दा बना रहे हैं, उसके पीछे मकसद गैर जाटों को यह याद कराना ही है कि यह वही हरियाणा है जहां पहले सरकारी नौकरियों में भर्ती और मनचाही जगह पोस्टिंग में सिर्फ जाटों की ही सुनी जाती थी लेकिन हमारी सरकार ने इस पूरे सिस्टम को पलट दिया।हुड्डा की पूरी कोशिश इसी आधार पर जाट कम्युनिटी को गोलबंद करने की है कि 'अगर इस बार भी खट्टर की वापसी हो गई तो उन लोगों का वजूद बिल्कुल खत्म हो जाएगा। इसलिए राजनीतिक ताकत जाटों को अपने हाथ मे रखनी चाहिए।' हुड्डा ही सबसे बड़े जाट नेता माने जा रहे हैं लेकिन यह याद रखने की बात है कि अभी पांच महीने पहले लोकसभा के चुनाव में जाट कम्युनिटी ने बीजेपी को ही वोट किया था। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता कहते हैं कि वह चुनाव मोदी का था। विधानसभा के चुनाव में वोटर्स का नजरिया बदला होता है।


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