फोर्टिस: 10 साल में 1 से 66 हॉस्पिटल खड़े किए, 2 गलतियों से जेल के दरवाजे पर आ गए सिंह बंधु


रेलिगेयर के करोड़ों की हेराफेरी के आरोप का सामना कर रहे मलविंदर और शिविंदर सिंह कभी अरबों के साम्राज्य के मालिक थे। 2008 में जिस रैनबैक्सी डील की वाहवाही हुई थी, वह आगे चलकर उनके गले की फांस बन गई। रैनबैक्सी को बेचने के कुछ ही समय बाद ही शुरू हो गई थी डूबने की कहानी।करोड़ों की हेराफेरी के आरोप का सामना कर रहे मलविंदर और शिविंदर सिंह कभी अरबों के साम्राज्य के मालिक थेसिंह ब्रदर्स ने सह-आरोपियों से सांठगांठ कर 2016 में वित्तीय घोटाला किया2008 में रैनबैक्सी को बेचने के कुछ ही समय बाद इन्होंने मॉरिशस में स्पेशल परपज वीइकल कंपनी की स्थापना कीरैनबैक्सी को मलविंदर और शिविंदर सिंह ने जापान की कंपनी इची सैंक्यो को 2.4 अरब डॉलर में 2008 में जब बेचा थाअरबों के साम्राज्य के मालिक रहे फोर्टिस के पूर्व प्रमोटर मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह को पुलिस ने आर्थिक धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार कर लिया। 2001 में जहां इनके पास सिर्फ एक हॉस्पिटल था, वहीं महज 10 साल में यह आंकड़ा 66 तक पहुंच गया। तरक्की की जबरदस्त गति के बावजूद सिंह बंधु दो ऐसी गलतियां कर बैठे, जिसने उन्हें जेल के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। शिविंदर सिंह समेत चार आरोपियों को गुरुवार को दिल्ली से और मलविंदर सिंह को लुधियाना से गिरफ्तार किया गया।लिखेंसिंह बंधुओं पर यह है रोप
आरोप है कि सिंह ब्रदर्स ने सह-आरोपियों से सांठगांठ कर 2016 में वित्तीय घोटाला किया। इसमें आरोप लगाया गया है कि दोनों भाइयों ने 'सोच-विचार कर आपराधिक साजिश रची, जिसके जरिए बड़ा वित्तीय घपला किया गया।' शिकायतकर्ता ने कहा कि आरबीआई के आगाह करने पर भी सिंह ब्रदर्स ने सुधार का कदम जानबूझकर नहीं उठाया और 'फाइनैंशल स्कैम' करते रहे।पढ़ें : फोर्टिस के पूर्व प्रमोटर शिविंदर मोहन सिंह करोड़ों के घोटाले में अरेस्ट2008 में रैनबैक्सी को बेचने के कुछ ही समय बाद इन्होंने मॉरिशस में स्पेशल परपज वीइकल कंपनी की स्थापना की लेकिन संकट का दौर तभी शुरू हो चुका था। आइए जानें इन बंधुओं का कारोबार डूबने की पूरी कहानी।जब 2008 में बेची थी कंपनीदादा भाई मोहन सिंह और पिता परविंदर सिंह की बनाई कंपनी रैनबैक्सी को मलविंदर और शिविंदर सिंह ने जापान की कंपनी दाइची सैंक्यो को 2.4 अरब डॉलर में 2008 में जब बेचा था, तब यह देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी थी। तब यह सवाल भी उठा कि सिंह बंधु फ्लैगशिप कंपनी को क्यों बेच रहे हैं और इसके बाद वे क्या करेंगे? इसके बाद पिछले 10 साल में जो कुछ होता गया, उससे सिंह बधुओं के सितारे खाक में मिलते चले गए।फंड की हेराफेरी का आरोप पड़ा भारीसिंह बंधु रेलिगेयर के फंड की हेराफेरी के आरोप का सामना कर रहे हैं। 2008 में जिस रैनबैक्सी डील की वाहवाही हुई थी, वह आगे चलकर उनके गले की फांस बन गई। डील के बाद 2014 तक रैनबैक्सी के चार प्लांट्स पर गलत मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस और दवाओं से जुड़े गलत डेटा की वजह से अमेरिकी ड्रग्स रेग्युलेटर बैन लगा चुका था। इसके बाद डील के दौरान जानकारियां छिपाने का आरोप लगाते हुए दाइची ने सिंह बंधुओं के खिलाफ इंटरनैशनल आर्बिट्रेशन कोर्ट में मुकदमा शुरू किया। इसमें जापान की कंपनी की जीत हुई और कोर्ट ने सिंह बंधुओं से दाइची को 3,500 करोड़ रुपये देने को कहा। सिंह बंधुओं ने इससे बचने के लिए आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी।पहली गलती, अंधाधुंध विस्तार भारी पड़ारैनबैक्सी से निकलने के बाद सिंह बंधुओं ने हॉस्पिटल चेन बिजनस को देश-विदेश में बढ़ाना शुरू किया और रेलिगेयर ब्रैंड के तहत फाइनैंशल सर्विसेज बिजनस में एंट्री की। साल 2001 में सिंह बंधुओं के पास एक हॉस्पिटल था, जो 2011 तक बढ़कर 66 तक पहुंच गया। सिंगापुर के पार्कवे हॉस्पिटल में 65 करोड़ डॉलर में सिंह बंधुओं ने 25 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदी। 2008 में रैनबैक्सी को बेचने के कुछ ही समय बाद सिंह बंधुओं ने मॉरीशस में आरएचसी फाइनैंशल सर्विसेज नाम के स्पेशल परपज वीइकल (एसपीवी) की स्थापना की।कुछ समय बाद एसपीवी के पास फोर्टिस इंटरनैशनल के साथ 6 और कंपनियां हो गईं, जिन्हें उसने दूसरों से खरीदे थे। इन कंपनियों के पास श्रीलंका, हॉन्ग कॉन्ग, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में हॉस्पिटल थे या वे बन रहे थे। हॉस्पिटल चेन बिजनस के अंधाधुंध विस्तार के चलते 2011 तक शेयर बाजार में लिस्टेड फोर्टिस पर 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया था। दूसरी तरफ, फाइनैंशल सर्विसेज बिजनस तो कभी भी मजबूती से खड़ा ही नहीं हो पाया।दूसरी गलती, भारी भरकम कर्ज ले डूबा2011 तक सिंह बंधुओं को अहसास हो गया था कि कर्ज उन्हें ले डूबेगा। इसके बाद इसे कम करने के लिए उन्होंने एक-एक करके ग्रुप के बिजनस को बेचना शुरू किया। पहले ऑस्ट्रेलियाई इकाई डेंटल कॉर्पोरेशन को बेचा गया। उसके बाद सिंगापुर में लिस्टेड रेलिगेयर हेल्थ ट्रस्ट को 2,200 करोड़ रुपये में। फिर डायग्नॉस्टिक बिजनस एसआरएल में 3,700 करोड़ रुपये की इक्विटी अलग की गई। इन सबसे फोर्टिस पर कर्ज घटकर 2,300 करोड़ रुपये रह गया।


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