PM मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से पहले चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद पर दिया ये बयान


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दूसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से पहले चीनी राजदूत सुन वीदोंग ने कहा कि भारत और चीन को क्षेत्रीय स्तर पर संवाद के माध्यम से शांतिपूर्वक विवादों का हल करना चाहिए और संयुक्त रूप से शांति तथा स्थिरता को बुलंद करना चाहिए।चेन्नई के समीप प्राचीन तटीय शहर मामल्लापुरम में शिखर सम्मेलन की तैयारियां कश्मीर मुद्दे की पृष्ठभूमि में हो रही है और दोनों पक्षों ने शी की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा अभी तक नहीं की है हालांकि समझा जाता है कि वह करीब 24 घंटे की यात्रा पर शुक्रवार को चेन्नई पहुंचेंगे। चीनी दूत ने कहा कि भारत और चीन दोनों को 'मतभेदों के प्रबंधन के मॉडल से आगे जाना चाहिए और सकारात्मक ऊर्जा के संचय के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को आकार देने और साझा विकास के लिए अधिकतम सहयोग की दिशा में काम करना चाहिए।' उन्होंने कहा, ''क्षेत्रीय स्तर पर, हमें शांतिपूर्वक बातचीत और विचार विमर्श के जरिए विवादों को हल करना चाहिए तथा संयुक्त रूप से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को कायम रखना चाहिए।उन्होंने कहा कि चीन-भारत संबंध द्विपक्षीय आयाम से आगे चले गए हैं और इनका वैश्विक और रणनीतिक महत्व है। चीनी राजदूत ने कहा, ''दोनों पक्षों को रणनीतिक संचार को मजबूत करना चाहिए, परस्पर राजनीतिक भरोसा को बढ़ाना चाहिए, द्विपक्षीय संबंधों में दोनों नेताओं के स्थिर मार्गदर्शन का भरपूर लाभ लेते हुए दोनों नेताओं के बीच बनी सहमति का ठोस कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।भारत ने जब जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का फैसला किया, तब भारत और चीन के संबंधों में कुछ तनाव आ गया। चीन ने भारत के फैसले की आलोचना की और उसके विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी यह मुद्दा उठाया। उसके कुछ दिनों बाद पाकिस्तान में चीन के राजदूत याओ जिंग ने कहा कि चीन कश्मीरियों की मदद के लिए काम कर रहा है ताकि उन्हें उनके मौलिक अधिकार और न्याय मिल सकें।मोदी और शी के बीच पहला अनौपचारिक शिखर सममेलन वुहान में अप्रैल 2018 में हुआ था। उसके कुछ महीनों पहले ही डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 73 दिनों तक गतिरोध रहा था। उस सम्मेलन में मोदी और शी ने अपनी सेनाओं को ''रणनीतिक निर्देश जारी करने का फैसला किया था ताकि संचार को मजबूत किया जाए और परस्पर भरोसा तथा आपसी समझ बन सके।इस सम्मेलन में परस्पर विकास और समग्र संबंधों का विस्तार सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर वार्ता केंद्रित होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि वुहान बैठक के सकारात्मक प्रभाव लगातार सामने आ रहे हैं और हमें मतभेदों के प्रबंधन के मॉडल से आगे जाना चाहिए और सकारात्मक ऊर्जा का संचय कर द्विपक्षीय संबंधों को आकार देना चाहिए और साझा विकास के लिए अधिकतम सहयोग की दिशा में काम करना चाहिए।सीमा से जुड़े दशकों पुराने सवाल पर चीनी राजदूत ने कहा कि पड़ोसियों में मतभेद होना सामान्य बात है और मुख्य बात उन्हें ठीक से संभालने और बातचीत के जरिए उनका समाधान खोजना है। सुन ने कहा कि पिछले कई दशकों में चीन-भारत सीमा क्षेत्र में एक भी गोली नहीं चली है और शांति कायम रखी गयी है। सीमा का सवाल चीन-भारत संबंधों का केवल हिस्सा है।उन्होंने कहा, ''हमें इसे चीन-भारत संबंधों के बड़े परिदृश्य में रखने और सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य प्रगति को प्रभावित नहीं करने देने की जरूरत है। राजदूत ने कहा कि चीन और भारत को अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में संचार और समन्वय को मजबूत करना चाहिए।उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिति की अनिश्चितता चीन और भारत दोनों के लिए साझी चुनौतियां हैं। हमारे बीच एकजुटता और सहयोग को मजबूत बनाना हमारे विकास और दुनिया के लिए एक अवसर है। व्यापार से जुड़े मुद्दों की चर्चा करते हुए राजदूत ने कहा कि चीन दक्षिण एशिया में लंबे समय से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से, द्विपक्षीय व्यापार 32 गुना बढ़कर करीब 100 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच गया है जो एक वक्त तीन अरब डालर से कम था। उन्होंने कहा कि 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों ने भारत के औद्योगिक पार्कों, ई-कॉमर्स और अन्य क्षेत्रों में अपना निवेश बढ़ाया है। उनका कुल निवेश आठ अरब डालर है और 2,00,000 स्थानीय नौकरियों के अवसर सृजित हुए हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक और व्यापार सहयोग बढ़ाने की व्यापक संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि चीन चीनी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित करता है और वह उम्मीद करता है कि भारत चीनी कंपनियों को यहां काम करने के लिए अधिक उचित, अनुकूल और सुविधाजनक व्यावसायिक माहौल मुहैया कराएगा।


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