सांड की आंख मूवी रिव्यू


यह फिल्म भारत की सबसे उम्रदराज शार्पशूटर्स चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की बायॉग्रफी है जो दर्शकों को एक अच्छा और प्रेरक संदेश देती है। फिल्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश की है तो आपको फिल्म में गांव का माहौल और सामाजिक संरचना भी देखने को मिलेगी। गांव की पितृसत्तातमक संरचना और उसे झेलती महिलाओं की परेशानियां भी देखने को मिलेंगी।कहानी: चंद्रो (भूमि पेडनेकर) और प्रकाशी (तापसी पन्नू) देवरानी-जेठानी हैं जो गांव के पितृसत्तातमक समाज को पसंद नहीं करती हैं लेकिन उनका पालन पोषण ऐसा हुआ है कि वह उस परिस्थिति में भी खुद को ढाल लेती हैं और खुद के लिए थोड़ा बहुत समय निकाल लेती हैं। 60 साल की उम्र में जौहरी गांव की रहने वाली चंद्रो और प्रकाशी को अपना निशानेबाजी का टैलंट पता चलता है। इसके बाद डॉक्टर से शूटर बने डॉक्टर यशपाल (विनीत कुमार सिंह) उनकी मदद करते हैं। चंद्रो और प्रकाशी इसके बाद कई चैंपियनशिप में मेडल जीतती हैं। जाहिर सी बात है कि चंद्रो और प्रकाशी के इस शौक से उनके परिवार और गांव के पुरुष पसंद नहीं करते हैं। चंद्रो और प्रकाशी के इस संघर्ष और सफलता की ही कहानी है 'सांड की आंख'।रिव्यू: डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी ने फिल्म के शुरू से ही दर्शकों को गांव के समाज की संरचना ठीक से समझाई है जहां महिलाओं को उनके दुपट्टे के रंग से पहचाना जाता है। एक सीन में भूमि नई-नई ब्याह कर आईं तापसी को खास रंग का घूंघट घर में भी पहनने को कहती हैं ताकि घर के मर्द औरतों के बीच में कन्फ्यूज न हों। शूटर दादियों के तौर पर तापसी और भूमि अच्छी लगी हैं जो अपनी नातिनों और पोतियों के लिए कुछ भी कर सकती हैं। फिल्ममेकर प्रकाश झा ने फिल्म में विलन का किरदार निभाया है और इस किरदार में वह जमे भी हैं।फिल्म के गाने 'वूमनिया' और 'उड़ता तीतर' पहले से ही पॉप्युलर है और अच्छे बन पड़े हैं। फिल्म के डायलॉग्स भी ठीक-ठाक ही हैं लेकिन सबसे ज्यादा आपको तापसी और भूमि का प्रोस्थेटिक मेकअप अखर सकता है। फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो है लेकिन सेकंड हाफ दर्शकों को अच्छे से बांधे रखता है।क्यों देखें: नारी सशक्तिकरण, मोटिवेशनल और ग्रामीण परिवेश की फिल्में पसंद हों तो पूरे परिवार के साथ इस फिल्म को देख सकते हैं।


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