सऊदी अरब के युवराज के सत्ता के शिखर तक पहुंचने की दास्तान


MBS के नाम से मशहूर, सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान अपने बेहद रूढ़िवादी देश को बदल रहे हैं. उसे मॉर्डन और कुछ हद तक लिबरल दिखाने की कोशिश में लगे हैं. लेकिन, साथ ही साथ उन्होंने सऊदी अरब को यमन की जंग में भी फंसा दिया है.


उन्होंने महिला अधिकारों की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों, कई इस्लामिक धर्म गुरुओं और ब्लॉगर्स को क़ैद कर लिया है. सलमान पर इस बात का भी गहरा संदेह है कि साल भर पहले तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी अरब के हुक्मरानों के आलोचक जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या उनके इशारे पर हुई थी.


कौन है ये शख़्स जिसे लोग MBS कहते हैं?







ख़ाशोज्जी को आख़िरी बार इस्तांबुल के सऊदी वाणिज्य दूतावास में दाखिल होते देखा गया था












2अक्टूबर को एक बजकर 14 मिनट हो रहे थे, जब जमाल ख़ाशोज्जी तुर्की के इस्तांबुल शहर के लेवेंत इलाक़े की एक साधारण सी दिखने वाली इमारत में दाखिल हुए थे. ख़ाशोज्जी एक जाने-माने लेखक थे और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के कट्टर आलोचक भी थे. वो इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास गए थे, ताकि अपने तलाक़ के दस्तावेज़ प्रमाणित करा सकें.


लेकिन, एक बार कॉन्सुलेट के अंदर घुसने के बाद ख़ाशोज्जी पर रियाद से भेजी गई सुरक्षा और ख़ुफ़िया अधिकारियों की टीम ने हमला बोला और उन्हें अपने क़ाबू में ले लिया. इन लोगों ने ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी. इसके बाद उनके शव को काट कर ऐसे ठिकाने लगाया कि आज तक उसका निशान नहीं मिला.


यमन में चल रही जंग में अब तक हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. इन में से बहुत से लोगों की जान सऊदी अरब के हवाई हमलों में गई. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सैकड़ों आलोचक सऊदी अरब के क़ैदख़ानों से लापता हो गए. लेकिन, इस एक पत्रकार के क़त्ल ने दुनिया के तमाम लोगों को सऊदी अरब के वली अहद के ख़िलाफ़ कर दिया.


हालांकि आधिकारिक रूप से सऊदी अरब के अधिकारियों ने लगातार इस बात से इनकार किया. लेकिन, कई पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों का ये यक़ीन था कि मोहम्मद बिन सलमान को ख़ाशोज्जी को ख़ामोश करने के इस ख़ुफ़िया मिशन की पहले से ही ख़बर थी. ख़बरों के मुताबिक़, सीआईए का तो ये मानना है कि ख़ुद प्रिंस सलमान ने ही ख़ाशोज्जी की हत्या का आदेश दिया था.


CBS 60 मिनट पर 29 सितंबर को प्रसारित हुए एक इंटरव्यू में प्रिंस एमबीएस ने जो भी हुआ उसकी ज़िम्मेदारी ली थी. इससे पहले पीबीएस पर एक इंटरव्यू में मोहम्मद बिन सलमान ने ये भी माना था कि जो भी हुआ वो उनकी निगरानी में हुआ. लेकिन, ये ख़ाशोज्जी की हत्या की ज़िम्मेदारी लेना नहीं था. ऐसा लगा कि ख़शोज्जी की हत्या से पैदा हुए विवाद को वो ठंडा करना चाहते हैं.


इस बेहद रहस्यमय हत्या की महत्वपूर्ण कड़ी है, 41 बरस के पूर्व एयरफ़ोर्स अधिकारी सऊद-अल-क़हतानी, जो कभी प्रिंस सलमान के क़रीबी सलाहकारों में से एक थे. ख़ाशोज्जी की हत्या के फ़ौरन बाद सऊद-अल-क़हतानी को बादशाह सलमान के कहने पर बर्ख़ास्त कर दिया गया था. लेकिन, इस बर्ख़ास्तगी से पहले तक सऊदी अरब के शाही दरबार में वो युवराज एमबीएस के सबसे करीबी फ़रमाबरदार थे.






कहा जाता है कि सऊद-अल-क़हतानी ने सऊदी अरब के आम लोगों की साइबर निगरानी का दायरा बढ़ाने में बहुत अहम रोल निभाया है. सिर्फ़ देश ही नहीं, विदेशों में भी सऊदी नागरिकों की साइबर जासूसी की जाती है. इसके लिए लोगों की प्राइवेसी में दख़ल देने वाले सॉफ्टवेयर का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है.











कुछ ख़बरें तो ये भी कहती हैं कि सऊदी अरब के नागरिकों के मोबाइल फ़ोन को ही जासूसी उपकरण में तब्दील कर दिया गया है. और ये सब मोबाइल इस्तेमाल करने वालों की जानकारी या इजाज़त के बग़ैर किया गया. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नीतियों की आलोचना या विरोध करने वालों को सोशल मीडिया गाली-गलौज और धमकी भरे मैसेज का हमला झेलना पड़ता है.


अल-क़हतानी के ट्विटर पर क़रीब दस लाख फॉलोवर हैं. क़हतानी ने सोशल मीडिया पर अपनी इस पहुंच का फ़ायदा उठाकर 'मक्खियों की फ़ौज' तैयार कर ली है. जो किसी भी इंसान को दुश्मन होने के शक में परेशान करते हैं और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करते हैं.


साल 2017 की गर्मियां आते-आते सऊदी अरब के ब्लॉगर्स, लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए मुहिम चलाने वाले, मानव अधिकार कार्यकर्ता और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की आलोचना करने वाले लोग जेल में ठूंसे जा रहे थे. ऐसे माहौल में जमाल ख़ाशोज्जी को भी ये एहसास हो रहा था कि उन्हें ख़तरा हो सकता है.


जून 2017 में जब प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस या सऊदी अरब का वली अहद मुक़र्रर किया गया, तो ख़ाशोज्जी ने सऊदी अरब छोड़ने का फ़ैसला किया और उन्होंने अमरीका में पनाह ली.
59 बरस के जमाल ख़ाशोज्जी हमेशा ख़ुद को देशभक्त सऊदी नागरिक कहते थे.


2000 के दशक की शुरुआत में ख़ाशोज्जी लंदन में सऊदी अऱब के राजदूत के मीडिया सलाहकार हुआ करते थे. उस दौर में मैं अक्सर उनके साथ कॉफ़ी पर गप-शप किया करता था. लेकिन, अमरीका जाने के बाद ख़ाशोज्जी वॉशिंगटन पोस्ट में लगातार प्रिंस सलमान के तानाशाही रवैये के ख़िलाफ़ लेख लिखने लगे थे.


कहा जाता है कि ख़ाशोज्जी के लगातार हमलों से प्रिंस सलमान नाराज़ हो गए थे. इसके बाद पत्रकार ख़ाशोज्जी को सऊदी अरब से फ़ोन जाने लगे कि वो सऊदी अरब लौट आएं. उनसे वादा किया जाता था कि उनकी हिफ़ाज़त की पूरी गारंटी दी जाएगी और सरकार में नौकरी भी मिलेगी.


ख़ाशोज्जी को इन वादों पर बिलकुल ऐतबार नहीं था. उन्होंने अपने दोस्तों को बताया कि अल-क़हतानी की टीम ने उनके ई-मेल और टेक्स्ट मैसेज को हैक कर लिया था और वो सऊदी हुकूमत के दूसरे आलोचकों के साथ उनकी बातचीत पढ़ लेते थे. ख़ाशोज्जी और उनके जैसी सोच वाले लोगों ने अरब देशों में बोलने की आज़ादी का आंदोलन छेड़ने की योजना बनाई हुई थी.


ट्विटर पर उनके 16 लाख फॉलोवर थे. वो मध्य-पूर्व के प्रसिद्ध पत्रकारों में से एक थे. युवराज मोहम्मद बिन सलमान और उनके क़रीबी सलाहकारों की नज़र में ख़ाशोज्जी उनकी हुकूमत के लिए बड़ा ख़तरा थे. हालांकि मोहम्मद बिन सलमान ने सीबीएस पर अपने इंटरव्यू में इस बात से भी इनकार किया था.












ऐतिहासिक रूप से इस बात की कई मिसालें मिलती हैं, जब सऊदी अरब के हुक्मरान, 'रास्ता भटक गए' नागरिकों, यहां तक कि राजकुमारों को स्वदेश बुला कर, 'वापस सही रास्ते पर ले आए' थे. कम से कम सऊदी अरब के जानकार तो यही कहते हैं.


लेकिन, अब तक किसी 'भटके हुए शख़्स' को सऊदी अरब के शाही परिवार ने कभी क़त्ल नहीं कराया था. किसी दूसरे देश में अपने नागरिक का क़त्ल, सऊदी शाही परिवार के काम करने के तौर-तरीक़ों से बिल्कुल ही अलग था. इसीलिए, ख़ाशोज्जी की हत्या की ख़बर बड़ी तेज़ी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां बटोरने लगी.


इस्तांबुल में ख़ाशोज्जी के साथ जो हुआ, इस पर शुरुआत में तो सऊदी अरब की सरकार की प्रतिक्रिया, गोलमोल थी. सऊदी अरब के अधिकारियों ने इस क़त्ल के साये तक से मोहम्मद बिन सलमान को दूर रखने की पुरज़ोर कोशिश की.


उन्होंने कहा कि ये कांड सऊदी सरकार के कहने पर नहीं किया गया. किसी ने ख़ुद ही ख़ाशोज्जी को मार डाला. लेकिन, सीआईए और दूसरी पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने सऊदी अरब के इस्तांबुल स्थित वाणिज्य दूतावास की बातें सुनी थीं. इन्हें, तुर्की की एमआईटी ख़ुफ़िया एजेंसी ने छुप कर रिकॉर्ड किया था.




इस कहानी के बारे में अधिक जानकारी के लिए बीबीसी आईप्लेयर पर पैनोरमा: दी ख़ाशोज्जी मर्डर टेप्स और जेन कॉर्बिन की रिपोर्ट दी सीक्रेट टेप्स ऑफ़ ख़ाशोज्जीज मर्डर पढ़ सकते हैं.




और जब अमरीकी सरकार ने ख़ाशोज्जी की हत्या में शामिल 17 संदिग्ध लोगों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए, तो इस लिस्ट में पहला नाम सऊद-अल-क़हतानी का था. लेकिन, आज की तारीख़ तक प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पक्के तौर पर इस हत्या से जोड़ने का एक भी 'सुराग' नहीं हाथ लगा है.


लेकिन, वॉल स्ट्रीट जर्नल के हाथ लगे सीआईए के एक दस्तावेज़ के मुताबिक़, प्रिंस एमबीएस ने अल-क़हतानी को ख़ाशोज्जी के क़त्ल से पहले, उस दौरान, और उसके बाद कम-से-कम 11 मैसेज भेजे थे.


मैं लंबे समय तक खाड़ी के अरब देशों में रहा हूं. अपने तजुर्बे के आधार पर मैं बड़े ऐतबार से कह सकता हूं कि अरब देशों में ऐसे अभियान कभी भी ख़ुदमुख़्तारी से नहीं होते. किसी की ऐसी हिम्मत नहीं है कि वो बिना आदेश के ऐसे मिशन को अंजाम दे. ऐसे फ़रमान हमेशा 'ऊपर' से आते हैं.








इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के बाहर तैनात एक तुर्क पुलिसवाला




 










ख़ाशोज्जी की मौत को लेकर दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हुए







अगस्त 2018 में, ख़ाशोज्जी की हत्या से पहले, सऊद अल-क़हतानी ने इशारों में एक बड़ा राज़दार ट्वीट किया था. जिस में क़हतानी ने लिखा था, "आप ये सोचते हैं कि मैं बिना निर्देश के फ़ैसले लेता हूं? मैं एक मुलाज़िम हूं. मेरा काम बादशाह और शहज़ादे के हुक्म बजाना है."




किसी ने अब तक ये नहीं कहा है कि ख़ाशोज्जी के क़त्ल में सऊदी अरब के बादशाह सलमान का कोई हाथ है या कोई रोल है. लेकिन, ये साफ़ है कि इस हत्या की साज़िश किंग सलमान के दुलारे शहज़ादे के क़रीबी लोगों ने ही रची थी. एक पूर्व ब्रिटिश ख़ुफ़िया अधिकारी का कहना था, "ये नामुमकिन है कि शहज़ादे सलमान को इस हत्या की साज़िश की ख़बर ही न हो."



"ख़ाशोज्जी की हत्या हमारे मुल्क, हमारी हुकूमत और हमारी अवाम पर बदनुमा दाग़ है."
प्रिंस ख़ालिद बिन बांदर अल-सऊद, लंदन में सऊदी अरब के राजदूत


जब ऐसा है, तो सवाल ये है कि आख़िर सऊद अल-क़हतानी हैं कहां, और उन पर इस क़त्ल का मुक़दमा क्यों नहीं चलाया जा रहा है?


मैंने ये सवाल हाल ही में लंदन में सऊदी अरब के राजदूत नियुक्त किए गए, प्रिंस ख़ालिद बिन बांदर अल-सऊद से पूछा. राजदूत प्रिंस ख़ालिद ने मुझे भरोसा दिया कि अल-क़हतानी को उनके पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया है और अब उनके ख़िलाफ़ जांच हो रही है. अगर जांच में ये बात सामने आती है कि ख़ाशोज्जी की हत्या में अल-क़हतानी का हाथ था, तो यक़ीनन उन पर केस चलेगा.


लेकिन, रियाद से आने वाली ख़बरों के मुताबिक़, अभी अल-क़हतानी ने भले ही अपनी गतिविधियां सीमित कर दी हों, मगर उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है.


प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के क़रीबी लोगों के बारे में जानकारी रखने वाले सऊदी अरब के एक व्यक्ति ने बताया, "अल-क़हतानी अभी शाही दरबार की बैठकों में नहीं आ रहे हैं. लेकिन, वो साइबर सुरक्षा और ऐसे ही दूसरे मसलों पर काम कर रहे हैं. वो भले ही कम दिख रहे हों, मगर, सऊदी सरकार उनके तजुर्बों का पूरा फ़ायदा उठा रही है."


इस जानकार का कहना था, "शहज़ादे सलमान के क़रीबी लोगों की नज़र में अल-क़हतानी ने प्रिंस की पूरी टीम के लिए अकेले क़ुर्बानी दी है. भले ही इस्तांबुल में हुए ऑपरेशन का पर्दाफ़ाश हो गया हो, मगर क़हतानी ने शहज़ादे का हुक्म तामील किया."

सऊदी अरब की सरकार ख़ाशोज्जी के क़त्ल के सिलसिले में 11 लोगों पर मुक़दमा चला रही है. इसकी शुरुआत हत्या के नौ महीनों बाद यानी इस साल जनवरी में हुई थी. इस मुक़दमे के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है कि किसी को मुज़रिम ठहराया गया हो, सज़ा दी गई हो. न ही ये पता है कि ये मुक़दमा कब ख़त्म होगा.


सऊदी अरब की न्यायिक व्यवस्था बिलकुल भी पारदर्शी नहीं है. ऐसे में अक्सर फ़ैसले किसी दंड संहिता या पीनल कोड के हिसाब से नहीं जज की मर्ज़ी पर निर्भर करते हैं. इस मामले के एक वरिष्ठ आरोपी मेजर जनरल अहमद अल-असीरी हैं. वो सऊदी अरब की ख़ुफ़िया एजेंसी के पूर्व उप-प्रमुख हैं.


मेजर जनरल अहमद अल-असीरी, पहले यमन में सऊदी अरब के हवाई अभियान के प्रवक्ता रहे थे. अल-असीरी से रियाद में मैं कई बार मिला था. उनसे हुई मुलाक़ात के तजुर्बों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि अल-असीरी ऐसे आदमी नहीं, जो ऐसी साज़िशों को बिना ऊपर से इजाज़त लिए ख़ुद से रच डालें.

अब, इस बापर्दा मुक़दमे का नतीजा कुछ भी हो, एक बात तो एकदम साफ़ है कि ख़ाशोज्जी के क़त्ल ने प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और सऊदी अरब की वैश्विक छवि पर बहुत बड़ा और दूरगामी असर वाला दाग़ लग गया है.

ब्रिटेन में सऊदी अरब के राजदूत प्रिंस ख़ालिद ने सितंबर में लंदन में एक मुलाक़ात के दौरान मुझसे कहा था, "मैं एक बात साफ़ कर दूं, ख़ाशोज्जी का क़त्ल हमारे मुल्क, हमारी हुकूमत और हमारी अवाम पर एक गहरा धब्बा था. काश! ये हादसा न पेश आया होता."


आम तौर पर सऊदी राज परिवार के लोग इतनी साफ़गोई से बात नही करते.







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