सेकुलर दलों के लिए खतरा बन रहे हैं ओवैसी? बिहार उपचुनाव में जीते सीट, यूपी में पीछे रह गई बीएसपी


ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार विधानसभा उपचुनाव की एक सीट जीत ली और यूपी की प्रतापगढ़ सीट पर उसके उम्मीदवार को बीएसपी से कहीं ज्यादा वोट मिले और एसपी से महज कुछ सौ वोटों से पीछे होते हुए तीसरे नंबर पर रही।यह 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की बात है। पांच साल पहले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने राज्य विधानसभा चुनाव में धमाकेदार एंट्री की थी। पहली बार उनके दो विधायक जीते थे, लेकिन उन पर सबसे बड़ा इल्जाम यह था कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा कराने के लिए उन्होंने बीजेपी की फंडिग पर चुनाव लड़ा और बीजेपी की रणनीति को कामयाब बनवाया। उस चुनाव में बीजेपी कांग्रेस-एनसीपी को सत्ता से बाहर कर खुद सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।हमने नतीजे आने के बाद ओवैसी से ही ओवैसी पर लगने वाले इल्जाम के बारे में पूछा था कि- क्या यह सही है कि आपने बीजेपी को मदद पहुंचाने के लिए महाराष्ट्र का चुनाव लड़ा? ओवैसी का जवाब था- 'चलिए कुछ देर के लिए हम इस इल्जाम को मान भी लेते हैं, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के लोग यह बताएं कि हमने तो सिर्फ 24 सीट पर चुनाव लड़ा था, जिन पर हमारी वजह से वे लोग हार गए, लेकिन ये दोनों पार्टियां उन 205 सीटों पर क्यों हार गईं, जिन पर हम चुनाव नहीं लड़ रहे थे? जिन 24 सीटों पर हमने चुनाव लड़ा अगर कांग्रेस-एनसीपी वह जीत भी लेतीं, तो भी उनकी सरकार नहीं बन रही थी क्योंकि वे महज 83 सीट ही जीत पाए हैं।'हार में एक सीट जीती, UP में बीएसपी से रही आगेबीजेपी के मददगार के तमगे से ओवैसी अभी उबर नहीं पाए हैं, लेकिन इस बार ओवैसी इसलिए चर्चा में हैं कि महाराष्ट्र में उनके हिस्से तो दो ही सीटें गई हैं, लेकिन कई सीटों पर उनके उम्मीदवार कांग्रेस-एनसीपी से ज्यादा वोट पाकर जीतते-जीतते रह गए। ज्यादा चौंकाने वाली बात यह रही कि ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा उपचुनाव की एक सीट जीत ली और यूपी की प्रतापगढ़ सीट पर उसके उम्मीदवार को बीएसपी से कहीं ज्यादा वोट मिले और एसपी से महज कुछ सौ वोटों से पीछे होते हुए तीसरे नंबर पर रही।औरंगाबाद सीट भी है AIMIM के खाते में
इससे पहले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की औरंगाबाद सीट भी AIMIM के खाते में जा चुकी है। ओवैसी को लेकर इस बार बहस का एक पहलू यह भी है कि क्या मुसलमानों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है? क्या मुस्लिम वोटर्स का वोटिंग पैटर्न बदल रहा है?तो क्या विकल्प बन सकते हैं?इस सवाल का जवाब 'ना' में ही हो सकता है। ओवैसी का जो गृह प्रदेश तेलंगाना (राज्य विभाजन से पहले आंध्रप्रदेश) है उसमें भी उनकी स्वीकार्यता महज हैदराबाद तक ही है। ऐसा नहीं कि मुस्लिम वोटर्स केवल हैदराबाद तक ही सीमित हैं लेकिन ओवैसी हैदराबाद शहर की 8 विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ते हैं, यहीं से उनके विधानसभा में 6-7 विधायक पहुचते हैं। मौजूदा समय में तेलंगाना विधानसभा में उनके सात विधायक हैं। उन्होंने अपनी पार्टी के लिए एक लक्ष्य निर्धारित कर रखा है- देश की हर विधानसभा में अपनी नुमाइंदगी। भले ही वह एक विधायक के जरिये ही क्यों न हो। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने हर राज्य की उन विधानसभा सीटों की लिस्ट तैयार कर रखी है, जिन पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। इसी वजह से उन्हें वोट कटवा कहा जाता है।सेकुलर पार्टियों को कितना होगा नुकसान?
इसमें कोई शक नहीं कि मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों के होने से 'सेक्युलर' पार्टियों के उम्मीदवारों की चुनौती बढ़ती जा रही है। लेकिन किसी भी राज्य में उससे बड़े उलटफेर की संभावना नहीं है क्योंकि ओवैसी राज्य की सिर्फ चुनिंदा सीटों पर चुनाव लड़ते हैं। दूसरी बात यह भी है कि मुस्लिम वोटर्स संपूर्णता में देखते हैं। अगर उन्हें लगा कि कुछ खास सीटों पर ओवैसी को जिता दिया तो राज्य में सेकुलर मिजाज की सरकार बनने की दिशा में असर पड़ सकता है तो उनकी प्राथमिकता बदल भी सकती है।


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