तब मेरा पूरा बदन टेढ़ा हो गया था और मैं खड़ी भी नहीं हो पाती थी: मौनी रॉय


मौनी रॉय की फिल्म मेड इन चाइना रिलीज होने के लिए तैयार है। हालांकि मौनी रॉय टीवी में काफी सफल रही हैं और उन्हें फिल्मों में भी अच्छे किरदार मिल रहे हैं लेकिन एक दौर ऐसा भी था कि जब उन्हें लगता था कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई है।टीवी की जानी-मानी अभिनेत्री मौनी रॉय अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम की हीरोइन बनने के बाद अब 'मेड इन चाइना' में राजकुमार राव की हीरोइन बनकर आ रही हैं। इस मुलाकात में वे अपनी फिल्म, लुक, अपने मुश्किल दौर और लड़की होने के नाते अपने गर्व और हीनता के पलों को साझा कर रही हैं।आप बंगाली हैं और आपने 'मेड इन चाइना' में एक गुजराती लड़की के किरदार को अंजाम दिया है? मुश्किल था आपके लिए?सबसे बड़ी चुनौती थी गुजराती दिखना, बोलने की बात तो दूर है। मेरा लुक और आंखें काफी हद तक बंगाली हैं। मेरी कॉस्ट्यूम डिजाइनर के लिए यह बहुत मुश्किल था कि वह मुझे गुजराती लुक में ढालें। वह चाहते थे कि मैं फुलझड़ी हाउसवाइफ लगूं। उनकी ब्रीफ और वर्कशॉप से मुझे बहुत हेल्प मिली। इससे मुझे पता चला कि एक हाउसवाइफ अपने घर और किचन में कैसा बर्ताव करेगी? वह कैसे कपड़े पहनेगी? ये सारी डिटेल्स मुझे मिलीं। सच कहूं, तो डायलेक्ट के मामले में मुझे कोई परेशानी नहीं आई, क्योंकि मुझसे कहा गया कि मैं इसे गुजराती कैरिकेचरिश न बनाऊं। यह मुंबई और दिल्ली जैसी शहर में पली-बढ़ी लड़की है और बहुत ही महत्वाकांक्षी रहती है। मगर वह रघु (राजकुमार राव) के प्यार में पड़कर अहमदाबाद शिफ्ट हो जाती है।फिल्म में सेक्शुऐलिटी की बात की गई है। क्या आप अपनी किशोरावस्था में कभी इस तरह की भ्रांति का शिकार हुईं कि किस करने से प्रेग्नेंट हो जाते हैं?
सच कहूं, तो मैं कोलकाता की एक प्रोग्रेसिव बंगाली फैमिली से ताल्लुक रखती हूं। मैं उस तरह के परिवार से कभी नहीं रही, जो कहे कि फिलहाल पढ़ाई करो और जब अच्छा रिश्ता आएगा, तो शादी कर लो। मेरे पापा ने मुझे हमेशा सीख दी कि मैं अगर तुम एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती हो, तो उसे अर्न करो। हमारे घर में पढ़ने-लिखने का भी खूब कल्चर रहा। बंगाली पैरंट्स एजुकेशन को बहुत अहमियत देते हैं, तो वो मेरे साथ भी था। हमारे टीचर्स और पैरंट्स दोनों ही हमें सेक्शुऐलिटी के नजरिए से नहीं बल्कि एजुकेशन के नजरिए से सारी बातें खुले तौर पर बताते थे। हमारे घर में मुझे एक बात मुझे बहुत पहले बता दी गई थी कि किसी चीज को लेकर तुम्हे उत्सुकता है, तो बेहिचक पूछो। मेरे पापा ने मुझे ना कहने की ताकत दी। उन्होंने बहुत पहले मुझसे कहा था, 'मान (उनका पेट नेम) तुमको निगेशन अर्थात ना कहने की ताकत से परिचित होना पड़ेगा। तुमको पता होना चाहिए कि कब ना कहना है? और ना कहना बुरा नहीं है। अगर तुम्हें लगता है कि कुछ गलत है, तुम उसमें राजी नहीं हो, तो बिंदास ना कहो। मुझे उन्होंने हर तरह से स्ट्रॉन्ग लड़की बनाया?आप जिंदगी और करियर में संतुष्ट हैं?
काफी हद तक। मैंने सब्र और शुक्र जैसे दो विचारों को आत्मसात कर लिया है। मुझे लगता है जब आप अपनी जिंदगी में सब्र और शुक्र करना सीख जाते हैं, तो जीवन की कठिनाइयों से पार पा जाते हैं।
आपके जीवन का सबसे मुश्किल दौर कौन-सा था?
वाकई बहुत मुश्किल दौर था, जब मैं एलफोर-एलफाइव के डीजनरेशन का शिकार हो गई थी। यह स्पाइन से जुड़ी गंभीर बीमारी है, जहां आपकी डिस्क, जॉइंट्स, नर्वस सिस्टम और सॉफ्ट टिश्यूज प्रभावित होते हैं। मेरा कंप्लीट डीजनेरेशन हो गया था। बहुत कम लोगों को मेरी इस बीमारी की जानकारी है। मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाती थी। मेरा पूरा बदन टेढ़ा हो गया था। मुझे एक दिन में 36 गोलियां खानी पड़ती थीं। तब लगता था कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। उसी दौर में मैंने अपने पिता को भी खो दिया। मेरी मॉम एक अलग तरह के डिप्रेशन से गुजर रही थीं। शारीरिक तौर पर दर्द और अक्षम होने के कारण मैं काम भी नहीं कर पा रही थी। 6 महीने तक मैं बिस्तर से लगी रही। मगर मैंने हिम्मत से काम लिया और आज आपके सामने हूं। मैं एक और फलसफे पर यकीन करती हूं, मन का हो, तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा।आपने लड़की होने के नाते सबसे ज्यादा स्ट्रॉन्ग कब फील किया और आप कभी हीनता का शिकार हुईं?मैं छोटी-छोटी बातों में प्राउड फील करने लगती हूं। अगर मैं किसी दिन किसी को थोड़ी-सी मदद कर दूं, तो गर्व होता है। हां मैं उसका ढोल पीटना पसंद नहीं करती। मैं लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाकर या उनके मतभेद मिटाकर गर्व महसूस करती हूं। जब भी मेरी मॉम मुझसे खुश होती हैं, तो प्राउड वाली फीलिंग आती है। सच कहूं, तो जब भी किसी रेप के बारे में सुनती हूं या पढ़ती हूं, बहुत ज्यादा हीन महसूस करने लगती हूं। जब पढ़ती हूं कि 6 महीने की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ, तो ह्युमिलिएशन की हद पार हो जाती है। मुझे इस बारे में बात करते हुए भी ओछापन जैसा फील होता है। मुझे तब भी शर्म आती है, औरत होने के नाते, जब कहा जाता है कि कितनी भी पढ़ाई कर लो करनी, तो शादी ही है। शादी के लिए तो पढ़ाई जरूरी है, तभी अच्छा लड़का मिलेगा। तब लगता है कि क्या लड़कियों का अपना कोई अस्तित्व नहीं है? मुझे लगता कि लड़कियों को ही नहीं बल्कि लड़कों को भी एजुकेट करने की जरूरत है कि वे लड़कियों के प्रति सही-गलत रवैए को पहचानें।


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