विधानसभा चुनाव: कैसे महाराष्ट्र और हरियाणा की सियासत में जूनियर पार्टनर से बड़ा भाई बन गई बीजेपी


जेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में एक छोटे खिलाड़ी से बड़ी ताकत बनने तक का सफर तय किया है। उसने 1990 के दशक से बेहद प्रभावी राजनीतिक ताकत शिव सेना के जूनियर पार्टनर के रूप में महाराष्ट्र की सियासत में खुद के लिए संभावनाएं टोटलनी शुरू की।हाराष्ट्र और हरियाणा की कुल 378 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हो रहे हैंदोनों ही राज्यों में बीजेपी 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तक जूनियर पार्टनर थी2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दोनों राज्यों में बीजेपी का भाग्य बदल गयापिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गईमहाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए मतदान जारी है। महाराष्ट्र की 288 और हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों को मिलाकर कुल 378 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जा रहे हैं। विश्लेषणों में माना जा रहा है कि दोनों राज्यों में बीजेपी का पलड़ा बहुत भारी है। आखिरकार बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें लाकर अपने दम पर बहुमत हासिल किया है जो 2014 में प्राप्त 282 सीटों से 21 ज्यादा है।बीजेपी ने 2014 में हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से सात पर और महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में 42 पर जीत हासिल की थी। आम चुनाव के तुरंत बाद राज्य विधानसभाओं के चुनाव हों तो राष्ट्रीय स्तर पर जीतने वाली पार्टी को अक्सर फायदा होता है।भगवा पार्टी के लिए दोनों राज्यों में सत्ता तक का सफर लगभग एक जैसा है। बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में एक छोटे खिलाड़ी से बड़ी ताकत बनने तक का सफर तय किया है। उसने 1990 के दशक से बेहद प्रभावी राजनीतिक ताकत शिवसेना के जूनियर पार्टनर के रूप में महाराष्ट्र की सियासत में खुद के लिए संभावनाएं टटोलनी शुरू की। हालांकि, हरियाणा में उसका कोई स्थायी सियासी साझेदार नहीं रहा और वह अलग-अलग मौकों पर हरियाणा विकास पार्टी, इंडियन नैशनल लोक दल (आईएनएलडी) और हरियाणा जनहित कांग्रेस (एचजेसी) जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन करती रही। लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव से दोनों राज्यों का सियासी पासा बीजेपी के पक्ष में पलट गया। फिर उसने विधानसभा चुनावों में खुद के लिए ज्यादा सीटों की मांग की और चुनाव होते ही वह महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों जगहों पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी दोनों राज्यों में जूनियर पार्टनर के रोल से निकलकर बड़े भाई की भूमिका में आ गई।बीजेपी ने पहले दोनों राज्यों में स्थानीय स्तर पर सियासी दबदबा रखने वाली जातियों और गैर-दबदबे वाली जातियों के गठजोड़ को कमजोर किया और फिर गैर-दबदबे वाली छोटी-छोटी जातियों के गठजोड़ का नया मोर्चा बना दिया। इसने महाराष्ट्र में उच्च जातियों (प्रमुख तौर पर ब्राह्मणों), गैर-मराठा पिछड़ी जातियों के साथ-साथ दलितों और आदिवासियों के एक वर्ग को अपने साथ किया तो हरियाणा में गैर-जाट मतदाताओं को साध लिया। हालांकि, लोकसभा चुनाव में आधे से ज्यादा (52%) जाट वोटरों ने भी बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था।कांग्रेस ने पिछले वर्ष के चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की जिसे आप सत्ताधारी लहर बता सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में किसानों की मुश्किलें, हरियाणा में ऑटो सेक्टर के संकट के साथ-साथ दूसरे कारकों पर भी ध्यान दीजिए। हरियाणा के मुख्य विपक्षी दलों में हाल ही में आंतरिक संघर्ष का दौर चला। आईएनएलडी ओम प्रकाश चौटाला के दोनों बेटों के बीच बंट चुकी है। वहीं, कांग्रेस पार्टी भूपिंदर सिंह हुड्डा और अशोक तंवर गुट के झगड़े से काफी कमजोर हो गई और आखिरकर तंवर ने पार्टी छोड़ भी दी। इसी तरह, महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कई विधायकों ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का दामन थाम लिया।यूं तो दोनों राज्यों में चुनावी समीकरण बीजेपी के पक्ष में ही जान पड़ता है, लेकिन सियासत में कई बार बड़े उलटफेर हुए हैं। इसलिए, हमें असल परिणाम के लिए गुरुवार तक का इंतजार करना होगा जब मतों की गिनती होगी।


Comments