यात्रियों के सेल्फ़ी और वीडियो लेने से परेशान हैं तेजस एक्सप्रेस की रेल होस्टेस


उतावले यात्री सेल्फ़ी और तस्वीरें खींचने के लिए उन्हें घेर लेते हैं. बिना उनकी अनुमति के मोबाइल कैमरे क्लिक करते हैं और वो अपने अंदर सिमटती हैं, सिकुड़ती हैं.


इस अनचाहे आकर्षण से असहज होने के बावजूद वो अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती हैं.


काले-पीले रंग की बदन से चिपकती चुस्त पोशाक पहने खड़ी ये लड़कियां भारत की इस पहली प्राइवेट ट्रेन की होस्टेस हैं.


हवाई सेवा की तरह


इसे रेल सेवा को भारत की पहली निजी या कार्पोरेट सेवा भी कहा जा रहा है. आईआरसीटीसी ने तेजस को रेलवे से लीज़ पर लिया है और इसका कमर्शियल रन किया जा रहा है. आईआरसीटीसी अधिकारी इसे प्राइवेट के बजाए कॉर्पोरेट ट्रेन कहते हैं.


ये तेज़ रफ़्तार ट्रेन आधुनिक सुविधाओं से लैस है और देश की राजधानी से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीच 511 किलोमीटर का सफ़र साढ़े छह घंटे में पूरा कर लेती है.


यूं तो इस ट्रेन में कई ख़ास बातें हैं लेकिन इसकी सबसे ख़ास बात ये ट्रेन होस्टेस ही हैं.


भारत में ये पहली बार है जब किसी रेल सेवा में हवाई सेवा की तरह होस्टेस तैनात की गई हैं. इसलिए यात्रियों में उनके प्रति जिज्ञासा और आकर्षण नज़र आता है.


तेजस एक्सप्रेस में तैनात इन होस्टेस का काम यात्रियों के खाने-पीने और अन्य ज़रूरतों के अलावा सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखना है.


उत्साहित लड़कियां


लखनऊ की रहने वाली श्वेता सिंह अपनी इस नई नौकरी को लेकर बेहद उत्साहित हैं.


चेहरे पर मुस्कान के साथ वो कहती हैं, "मुझे देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस में काम करने पर गर्व है. हम भारत की पहली महिलाएं हैं जो ट्रेन में होस्टेस हैं. मैं अपना सपना जी रही हूं."


वो कहती हैं, "हम हर दिन नए यात्रियों से मिलते हैं, बात करते हैं, ये अच्छा लगता है. हर तरह के लोग मिलते हैं, उन्हें संतोषजनक सेवा देना ही सबसे बड़ा चेलेंज होता है."


तेजस एक्सप्रेस के दस डिब्बों में श्वेता जैसी 20 कोच क्रू तैनात हैं. इन सभी ने लखनऊ के एक इंस्टीट्यूट से एविएशन हॉस्पीटेलिटी और कस्टमर सर्विस में डिप्लोमा किया है.


ये सभी आईआरसीटीसी की कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि एक अन्य प्राइवेट कंपनी के ज़रिए इनकी सेवाएं ली जा रही हैं.


तीन दौर की चयन प्रक्रिया


श्वेता बताती हैं, "तीन दौर की चयन प्रक्रिया के बाद हमें ये काम मिला है. मेरे परिजनों को गर्व है कि मैं तेजस एक्सप्रेस में काम कर रही हूं."


मूलरूप से उन्नाव की रहने वाली वैशाली जायसवाल सर्विस ट्रॉली सजा रही हैं.


उन्होंने भी श्वेता की ही तरह एयर होस्टेस बनने की तैयारी की थी. वो अपने काम को बिलकुल एयर होस्टेस के काम जैसा ही मानती हैं.


वैशाली कहती हैं, "जो काम विमान में केबिन क्रू करते हैं वही काम हम करते हैं. फ़र्क यही है कि एयर होस्टेस हवा में काम करती हैं, हम पटरी पर हैं."


वो कहती हैं, "हम एक चलती ट्रेन में हैं और यहां कई बार परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं. हमें उनसे निबटने का प्रशिक्षण दिया गया है."


आगे के लिए सबक


तेज़ रफ़्तार से चलती और हिलती डुलती ट्रेन में अंशिका गुप्ता पूरे विश्वास से सर्विस ट्रॉली को थामे हुए हैं. अभी तक भारतीय ट्रेनों में ये काम मर्द ही करते रहे थे.


अंशिका कहती हैं, "हम अभी सीख ही रहे हैं. ये पहली बार है जब भारत में हम जैसी लड़कियां ट्रेन में सेवाएं दे रही हैं. हमारे सीखे सबक आगे काम आएंगे."


इस ट्रेन की अधिकतर क्रू मेंबर 20 साल की उम्र के आसपास की हैं और मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं.


रेलवे में निजीकरण के इस प्रयोग ने उनके लिए नौकरी के अवसर पैदा किए हैं.


अंशिका कहती हैं, "मेरी मां हमेशा कहती थीं कि मैं कुछ ना कुछ कर लूंगी, वो अब मुझे यहां देखकर बहुत ख़ुश हैं."


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