उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के बिजली बिल पर चिंता जताते हुए एक हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है।
- उत्तराखंड हाई कोर्ट में यूपीसीएल के खिलाफ दायर हुई जनहित याचिका
- याचिका में कहा गया है कि जनरल मैनेजर 90 के बिल की बजाय चुका रहे हैं 425 रुपये
- हाई कोर्ट ने मामले में सख्ती दिखाते हुए यूपीसीएल से एक हफ्ते में जवाब देने का कहा है
देहरादून
सी के टम्टा उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के जनरल मैनेजर हैं। जनहित याचिका के जरिए सामने आए आंकड़ों के मुताबिक, टम्टा का 25 महीने का बिजली का बिल चार लाख रुपये का है। हालांकि, वह बिल के रूप में हर महीने सिर्फ 425 रुपये चुका रहे हैं। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सी के टम्टा को जमकर फटकार लगाई है। याचिका में शिकायत की गई है कि टम्टा के अलावा यूपीसीएल के बहुत सारे कर्मचारी और उनके परिवार के लोग बिल चुकाने में गड़बड़ी करते हैं। यह भी कहा गया है कि रिटायर होने के बाद भी लोग बिल नहीं चुकाना चाहते हैं।
जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने इस रवैये पर नाराजगी जताई। उन्होंने इसे यूपीसीएल से आंकड़े छिपाने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास किया। कोर्ट ने बिजली के दोहन पर चिंता भी व्यक्त की। वहीं, यूपीसीएल ने कोर्ट में जवाब दिया कि जनरल मैनेजर के घर पर 2005 में मीटर लगाया गया था लेकिन इसकी रीडिंग का रेकॉर्ड लेना 2015 में शुरू हुआ। यूपीसीएल 100 यूनिट तक के बिल के लिए 2.75 रुपये और उसके ऊपर 400 यूनिट तक 5.65 रुपये प्रति यूनिट चार्ज करता है।
सीएजी ऑडिट का आदेश भी दे सकता है कोर्ट
जनहित याचिका दायर करने वालों की ओर से पेश हुए वकील बी पी नौटियाल ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात की। उन्होंने कहा, 'कोर्ट ने पहले कहा कि वह शुरुआत में यूपीसीएल के बुक ऑफ रेकॉर्ड्स के सीएजी ऑडिट का निर्देश देने के बारे में सोच रहा है। फिलहाल कोर्ट ने यूपीसीएल को इन आंकड़ों पर जवाब देने के लिए एक हफ्ते का टाइम दिया है।'
नौटियाल ने आगे कहा, 'कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को हर साल 15,000 यूनिट का फायदा मिलता है लेकिन इस केस में तो कोई सीमा ही नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि अधिकारी नाममात्र का भी बिल चुका रहे हैं या नहीं है। यह पूरी तरह से पद का दुरुपयोग है।' कोर्ट ने यूपीसीएल को कहा है कि वह एक हफ्ते के अंदर विस्तृत जवाब दाखिल करे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यूपीसीएल यह भी बताए कि ये सुवधिाएं कॉर्पोरेशन के कई विभागों को क्यों दी जा रही हैं?
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