इस साल 8% कम रह सकती है गोल्ड डिमांड, भारतीयों को अब नहीं भा रहा सोना!


WGC की डिमांड ट्रेंड रिपोर्ट में पता चला है कि 2019 की तीसरी तिमाही में देश में सोने की मांग पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 32 पर्सेंट घटकर 123.9 टन रही। इसका कारण कीमतों में तेजी है या गोल्ड से दूरी बना रहे हैं लोग?




  • दो महीने से कम समय में 10 दाम सोने के भाव में 4000 रुपये की तेजी दर्ज की गई

  • जुलाई के मध्य में सोने के भाव जहां 35,000 रुपये थे, वह सितंबर में बढ़कर 38,795 रुपये के स्तर पर पहुंच गए

  • दक्षिण भारत में अगस्त-सितंबर में शादियों का सीजन होता है, इस दौरान मांग मे 15-20% कमी रही

  • धनतेरस पर खरीदारी को संकेतक मानें तो उत्तर भारत के लिए भी गोल्ड के बाजार में नरमी रहने की आशंका



 

नई दिल्ली
आर्थिक सुस्ती और कीमतों में तेज बढ़ोतरी से देश में सोने की मांग को नुकसान पहुंचा है। देश में इस साल सोने की डिमांड 8 पर्सेंट घटकर 700 टन रह सकती है, जो 2018 में 760.4 टन थी। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 के पहले हफ्ते में सोने के 39,011 रुपये प्रति 10 ग्राम के ऑल टाइम हाई दाम और कस्टम ड्यूटी में 2.5% की बढ़त, तीसरी तिमाही में गोल्ड और जूलरी के बाजार को डुबोने के लिए काफी थे। WGC की डिमांड ट्रेंड रिपोर्ट में पता चला है कि 2019 की तीसरी तिमाही में देश में सोने की मांग पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 32 पर्सेंट घटकर 123.9 टन रही।


मौजूदा वर्ष की सितंबर तिमाही में जूलरी के लिए गोल्ड डिमांड 101.6 टन रही, जो 2016 की दूसरी तिमाही के बाद सबसे कम है। साल 2018 की तीसरी तिमाही से तुलना करें तो यह आंकड़ा 32% कम है। इसके पीछे गुनहगार कौन है? दो महीने से कम समय में 10 दाम सोने के भाव में 4000 रुपये की तेजी दर्ज की गई। जुलाई के मध्य में सोने के भाव जहां 35,000 रुपये थे, वह सितंबर में बढ़कर 38,795 रुपये के स्तर पर पहुंच गए। कीमतों में तेजी का मांग पर असर देखने को मिला। दक्षिण भारत में अगस्त-सितंबर में शादियों का सीजन होता है और इस दौरान तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के वेडिंग जूलरी मार्केट में काफी हलचल रहती है।


दाम बढ़ने के कारण पिछले साल के मुकाबले इस सीजन में 15-20 फीसदी कम मांग रही। हालांकि तीसरी तिमाही के आखिरी हफ्तों में कीमतों में कुछ कमी के चलते मांग बढ़ने की उम्मीद भी बेमाने रही क्योंकि वह समय पितृ पक्ष का था, जिस दौरान सोना खरीदना शुभ नहीं माना जाता। अगर धनतेरस पर खरीदारी को संकेतक मानें तो उत्तर भारत के लिए भी गोल्ड के बाजार में नरमी रहने की आशंका है, जहां शादियों का सीजन चल रही है।

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गोल्ड बार पर भी असर
ऐसा नहीं है कि दाम बढ़ने के कारण सिर्फ सोने के गहनों का बाजार नरम रहा। सोने के सिक्कों और बार के बाजार के भी अच्छे दिन दूर रहे। इस बाजार में पिछले 11 सालों बाद इतनमी कम डिमांड देखने को मिली। साल 2009 की पहली तिमाही के बाद पहली बार सोने के सिक्के और बार का बाजार इतना ठंडा रहा। पिछले साल की समान अवधि से तुलना करें तो इस बाजार में 35% कम मांग दर्ज की गई। दाम ज्यादा होने के कारण रिटेल निवेशक पैसा लगाने से बचते दिखे और जिन्होंने पहले ही निवेश किया हुआ था, उन्होंने कीमत बढ़ने की आस में होल्ड करना बेहतर समझा।


गोल्ड रीसाइकलिंग ऐंड रीयूज
सोने की कीमतों के रेकॉर्ड हाई पर होने के बावजूद भारत में पर कैपिटा गोल्ड डिमांड(प्रति व्यक्ति सोने की मांग) पिछले दो सालों (2017 और 2018) से 0.6 ग्राम पर बनी रही। भारतीय ग्राहक नया सोना खरीदने की बजाय पुराने सोने को रीसाइकल करना या रीयूज करना बेहतर मान रहा है। 2019 की तीसरी तिमाही में शुद्ध सर्राफा आयात पिछले साल के मुकाबले 66% कम रहा, जबकि इस दौरान रीसाइकल्ड गोल्ड की सप्लाई में 59% की बढ़त दर्ज की गई। दरअसल, इस साल की कुल रीसाइकल्ड गोल्ड सप्लाई 2017 और 2018 के मुकाबले काफी ज्यादा रही। सितंबर तक यह 90.5 टन रही। उम्मीद की जा रही है कि पूरे साल के लिए यह आंकड़ा 100 टन से पार का होगा।


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