झारखंड: तीन महीने से नहीं था राशन, फिर मौत की वजह भूख कैसे नहीं?


पिछले चार साल में झारखंड में इस तरह की 22 मौतें सामने आई जो कि पूरे देश में 85 मौतें का एक चौथाई है। संयोग से, ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 97 से फिसलकर 102 वें पायदान पर आ गया।




  • लातेहार जिले के एक गांव में बेहद कम भोजन में गुजारा कर रहे रामचरन मुंडा की मौत हो गई, भूख को मौत की वजह नहीं माना गया

  • चार साल में झारखंड में इस तरह की 22 मौतें सामने आईं, ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भी भारत 97 से फिसलकर 102वें पायदान पर आ गया

  • फरवरी 2018 में झारखंड में भूख से मौत के मामले देखने के लिए नौ सदस्यों की एक कमिटी बनाई गई, इसके आधार पर प्रोटोकॉल तय हुए



रांची
झारखंड के लातेहार जिले के रिमोट एरिया लुरगुमी कलां में तीन महीने तक बेहद कम भोजन में गुजारा कर रहे 65 साल के रामचरन मुंडा की 5 जून को मौत हो गई। हालांकि आधिकारिक डेटा में भूख को मौत की वजह नहीं माना गया। पिछले चार साल में झारखंड में इस तरह की 22 मौतें सामने आईं जो कि पूरे देश में 85 मौतें का एक चौथाई है। संयोग से, ग्लोबलहंगरइंडेक्स में भारत 97 से फिसलकर 102वें पायदान पर आ गया।हालांकि अब कुछ राज्य भूख से मौतों पर जागे हैं और संशोधन कर नए दिशा-निर्देशों को लागू कर रहे हैं। फरवरी 2018 में झारखंड में भूख से मौत के मामले देखने के लिए नौ सदस्यों की एक कमिटी बनाई गई। 8 महीने बाद कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। दिसंबर में सरकार ने इसे अपनाया और हर जिले को अधिसूचित किया। इसी के साथ झारखंड पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने भुखमरी को परिभाषित करने के लिए एक प्रोटोकॉल तय किया।

भुखमरी के लिए प्रोटोकॉल लाने वाला झारखंड पहला राज्य
प्रोटोकॉल में चार चरणों में कार्रवाई को तय किया गया है। सबसे पहले 24 घंटे के अंदर मौत की जांच और परिवार का मेडिकल चेकअप। दूसरे चरण में 15 दिन के अंदर कम से कम गांव की आधी जनसंख्या का खाद्य सुरक्षा और हेल्थकेयर स्थिति रिपोर्ट करना। सरकारी योजना के कार्यान्वयन के किसी भी तरह के गैप को तीन सप्ताह के भीतर पहचानना और उसे सुधारना। इसके बाद भुखमरी से बाहर निकालने के लिए तीन साल तक समुदाय की निगरानी की जाती है और आंगनबाड़ी वर्कर हर तीन से 6 महीने में भुखमरी की कगार पर आने वाले परिवारों की रिपोर्ट तैयार करेंगी।

नए नियमों के बाद सामने आईं दो मौतें
हालांकि झारखंड में नए नियम के अधिसूचित किए जाने के बाद भी भूख से दो मौतें सामने आईं लेकिन आधिकारिक रेकॉर्ड में भूख को वजह नहीं माना गया। रामचरन के केस को उदारहण के तौर पर देखते हैं। उनके गांव में पीडीएस सर्विस ऑनलाइन है लेकिन बेहद खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से वह तीन महीने तक राशन इकट्ठा नहीं कर पाए। रामचरन की मौत के 20 दिन बाद केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने संसद में कहा कि भारत में भूख से मौत का कोई मामला नहीं है।

भूख से मौत मानने को तैयार नहीं सरकार
स्टेट फूड ऐंड कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट के डायरेक्टर सुनील सिन्हा कहते हैं, 'हमें नहीं पता कि क्या ये मौतें वाकई में भूख की वजह से हुई है या फिर सुर्खियों में आने के लिए इसे ऐसा दिखाया गया।' उन्होंने आगे कहा, 'अगर 80 साल के बुजुर्ग की मौत होती है तो यह भूख से है या फिर प्राकृतिक मौत है? अगर 5 सदस्यों वाले एक परिवार के किसी शख्स की मौत होती है तो बाकी सब कैसे सर्वाइव करते रहे? लोग इस तरह के दावे करके राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करते हैं।'

अन्य राज्यों को मिला मॉडल
एक्सपर्ट्स को इसमें उम्मीद की रोशनी नजर आती है। मेडिकल एक्सपर्ट डॉ. सुरंजीन प्रसाद कहते हैं, 'शायद रिपोर्ट से तुरंत मदद न मिले, लेकिन अन्य राज्यों को अपनाने के लिए एक मॉडल मिल गया है। पब्लिक पॉलिसी में, छोटे स्टेप्स लिए बिना बड़ी जीत नहीं हो सकती है।'


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