क्या है RCEP? जानें क्यों हो रहा है इस पर बवाल


RCEP एक फ्री ट्रेड पैक्ट हैं, जिसके तहत सदस्य देश एक दूसरे से आयात और निर्यात पर बहुत कम टैक्स लगाते हैं। इस समझौते में आसियान के 10 सदस्य देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। सोनिया गांधी ने कहा कि इस समझौते से देश के किसान पिस जाएंगे।




  • 4 नवंबर को थाईलैंड में आसियान समिट है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होने वहां पहुंच चुके हैं

  • माना जा रहा है कि इस समिट में भारत RCEP पैक्ट पर साइन करेगा

  • RCEP एक फ्री ट्रेड पैक्ट है, जिसके तहत सदस्य देश आपस में आयात और निर्यात पर कम टैक्स लगाते हैं

  • RCEP पैक्ट में आसियान के 10 देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साउथ कोरिया जैसे देश शामिल हैं



 

नई दिल्ली
रिजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) को लेकर राजनीति तेज हो गई है। 4 नवंबर को बैंकॉक में होने वाले आसियान (ASEAN) समिट में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाइलैंड में हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस समिट में भारत RCEP पैक्ट पर भारत साइन कर देगा। कांग्रेस पार्टी इसका जबर्दस्त विरोध कर रही है तो भारतीय उद्योग जगत ने भी चिंता जताई है। आइए जानते हैं असल में यह पूरा मामला है क्या?


क्या है RCEP?
विरोध की वजह क्या है, इससे पहल आइये जानते हैं कि आखिरकार RCEP क्या है। आरसीईपी एक ट्रेड अग्रीमेंट है जो सदस्य देशों को एक दूसरे के साथ व्यापार में सहूलियत प्रदान करता है। अग्रीमेंट के तहत सदस्य देशों को आयात और निर्यात पर लगने वाला टैक्स नहीं भरना पड़ता है या बहुत कम भरना पड़ता है। इस अग्रीमेंट पर आसियान के 10 देशों के साथ-साथ छह अन्य देश, जिसमें भारत भी शामिल है, दस्तखत करेंगे।

भारत पर व्यापारिक घाटे का बोझ बढ़ जाएगा
RCEP के सदस्य देशों पर ध्यान दें तो 10 आसियान सदस्यों के अलावा इसमें भारत, चीन, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। यह अग्रीमेंट दुनिया के 3.4 अरब लोगों के बीच एक समझौता होगा और यह विश्व का सबसे बड़ा फ्री ट्रेड पैक्ट होगा। भारत का व्यापार घाटा RCEP के ज्यादातर सदस्य देशों के साथ है और समझौते के बाद भारत पर बहुत ज्यादा बोझ बढ़ जाएगा। किसी देश के साथ व्यापार घाटे का मतलब है कि हम उस देश से आयात ज्यादा करते हैं और निर्यात कम। ऐसे में यदि आयात टैक्स घटता है तो यह व्यापार घाटा और बढ़ सकता है।

उद्योग जगत क्यों चिंतित?
भारतीय उद्योग जगत ने आरसीईपी समूह में चीन की मौजूदगी को लेकर चिंता जताई है। डेयरी, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन समेत विभिन्न क्षेत्रों ने सरकार से इन क्षेत्रों में शुल्क कटौती नहीं करने का आग्रह किया है। उद्योग जगत को आशंका है कि आयात शुल्क कम या खत्म होने से विदेशों से अधिक मात्रा में माल भारत आएगा और स्थानीय उद्योगों पर इसका बुरा असर होगा। अमूल ने भी डेयरी उद्योग को लेकर चिंता जाहिर की थी।

क्या है प्रस्ताव?
योजना के मुताबिक, भारत प्रस्तावित समझौते के तहत चीन से आने वाले करीब 80 प्रतिशत उत्पादों पर शुल्क घटा या हटा सकता है। भारत इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आयातित 86 प्रतिशत उत्पादों और आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया से आयात होने वाले उत्पादों के 90 प्रतिशत पर सीमा शुल्क में कटौती कर सकता है। आयात होने वाले सामानों पर शुल्क कटौती को 5, 10, 15, 20 और 25 साल की अवधि में अमल में लाया जाना है। भारत का 2018-19 में RCEP के सदस्य देशों में से चीन, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया सहित 11 देशों के साथ व्यापार में घाटा रहा है।

क्या है विपक्ष का तर्क?
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने RCEP को लेकर शनिवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि सरकार इसके जरिए पहले ही बुरी स्थिति का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी में है।एशिया-प्रशांत के 16 देशों के साथ प्रस्तावित RCEP समझौते को लेकर सोनिया ने कहा, 'सरकार के कई निर्णयों से अर्थव्यस्था को कम नुकसान नहीं हुआ था कि अब वह RCEP के माध्यम से बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी में है। इससे हमारे किसानों, दुकानदारों, छोटे और मझले इकाइयों पर गंभीर दुष्परिणाम होंगे।'

पीएम मोदी ने दिया भरोसा
बैंकॉक यात्रा पर शनिवार को रवाना हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि RCEP बैठक में भारत इस बात पर गौर करेगा कि क्या व्यापार, सेवाओं और निवेश में उसकी चिंताओं और हितों को पूरी तरह से ध्यान रखा गया है या नहीं। मोदी ने कहा कि भारत ने 'उचित प्रस्तावों' को एक स्पष्ट तरीके से आगे रखा है और मुक्त व्यापार के लिए 'ईमानदारी' से वार्ता कर रहा है। मोदी ने कहा कि भारत को यह 'स्पष्ट' है कि पारस्परिक रूप से लाभप्रद RCEP, जिससे सभी पक्ष यथोचित लाभ प्राप्त करते हैं, वह देश और वार्ता में शामिल अन्य सभी राष्ट्रों के हित में है।


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