पहली बार नहीं, इन मौकों पर भी बीजेपी को छोड़ कांग्रेस के 'साथ' आई है शिवसेना


1977 के चुनाव में भी बालासाहेब ने कांग्रेस का समर्थन किया था। हालांकि शिवसेना को यह समर्थन काफी भारी पड़ा और 1978 के विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव में शिवसेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।




  • महाराष्ट्र में सरकार गठन की तस्वीर लगभग साफ हो गई है, एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना की सरकार

  • माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में एनसीपी के समर्थन से शिवसेना सरकार बनाएगी और कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन देगी

  • कट्टर हिंदुत्व के लिए जानी जाने वाली शिवसेना इससे पहले भी बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस के साथ जा चुकी है



 

मुंबई
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद जहां लंबे समय तक कुर्सी के लिए खींचतान चलती रही, वहीं अब सरकार की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में एनसीपी के समर्थन से शिवसेना सरकार बनाएगी और कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन देगी। कट्टर हिंदुत्व के लिए जानी जाने वाली शिवसेना का बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाना भले ही आपको अचरज में डाल रहा हो लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। हम आपको बता रहे हैं कि आखिर कब-कब बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग स्टैंड लिए तथा शिवसेना और कांग्रेस का स्टैंड एक जैसा रहा।


इससे पहले 2012 में शिवसेना ने कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी और 2017 में राष्ट्रपति पद की कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था। इतना ही नहीं कट्टर हिंदू की छवि रखने वाले शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे भले ही अपने कार्टूनों में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को निशाना बनाते रहे हों लेकिन 1975 में उनके द्वारा लगाए गए आपातकाल का शिवसेना ने समर्थन किया था। इसके बाद 1977 के चुनाव में भी बालासाहेब ने कांग्रेस का समर्थन किया था। हालांकि शिवसेना को यह समर्थन काफी भारी पड़ा और 1978 के विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव में शिवसेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

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2 सालों में ही आ गई थी बीजेपी-शिवसेना में खटास
वहीं अगर बात करें बीजेपी और शिवसेना की रिश्तों की तो, 1989 में आधिकारिक तौर पर दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ था। इस गठबंधन में बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने बड़ी भूमिका निभाई थी। गठबंधन के बाद 1989 का लोकसभा चुनाव और 1990 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ा। हालांकि 1991 के बीएमसी चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर खटास आ गई और दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।

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2014 में भी बीजेपी, शिवसेना ने अलग-अलग लड़ा था चुनाव
1995 के विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा लेकिन नतीजे आने के बाद दोनों ने साथ मिलकर सरकार बना ली। इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं, जबकि शिवसेना दूसरे नंबर पर और बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी। इसके बाद 2014 में हुए विधानसभा चुनाव को भी दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा लेकिन चुनाव के बाद एक बार फिर दोनों साथ आ गईं और राज्य में गठबंधन की सरकार बना ली।

'कुर्सी' पर विवाद, टूटा वर्षों पुराना साथ
2018 में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर विभिन्न मुद्दों पर बीजेपी को घेरा और भविष्य में गठबंधन न करने की बात की। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों साथ रहे और फिर विधानसभा चुनाव में भी बराबर सीटों का बंटवारा करते हुए दोनों ने साथ चुनाव लड़ा। हालांकि बाद में नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को लेकर दोनों पार्टियों में 15 दिन से अधिक समय तक गतिरोध चलता रहा। इस दौरान बीजेपी 5 साल तक अपना मुख्यमंत्री रखने की बात पर अड़ी रही और शिवसेना यह कहती रही कि बीजेपी ने सत्ता के 50-50 के बंटवारे के कथित वादे पर धोखा दिया है। आपको बता दें कि 24 अक्टूबर को आए महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों में बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं।


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