क्या वास्तव में था महाभारत काल? यूपी में मिले 3800 साल पुराने साक्ष्य


नई दिल्ली। महाभारत काल की खोज को ध्यान में रख कर बागपत (उत्तर प्रदेश) के सिनौली में खोदाई कराने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को बड़ी सफलता हाथ लगी है। इस खोदाई में मिले जिन जले हुए अवशेषों को जांच के लिए लैब भेजा गया था। कार्बन डेटिंग (काल निर्धारण की विधि) जांच में इनके 3800 साल पुराने होने की पुष्टि हुई है। वहीं सिनौली की खोदाई में मिले एक हौद के बारे में सीक्रेट चैम्बर होने के बारे में पता चला है। इस चैम्बर का उपयोग अंतिम संस्कार के लिए शव को लाए जाने के बाद लेप आदि लगाने के लिए किया जाता था। इसके बाद इसे ताबूत में रख कर जमीन में गाड़ दिया जाता था। इस चैम्बर में दक्षिण दिशा से प्रवेश के संकेत मिले हैं।



लखनऊ से आई रिपोर्ट से बढ़ाई एएसआइ का हौसला


बागपत के सिनौली में दो साल तक लगातार खोदाई हुई है। इसमें शाही ताबूत, दो ताबूतों के साथ रथ,धनुष बाण, तलवार, युद्ध में पहना जाने वाले हेलमेट आदि ऐसी चीजें मिली हैं जो ताबूतों में रखे शवों के योद्धाओं के होने की ओर इशारा करती हैं। इन ताबूतों के साथ मिट्टी के बर्तनों में जले हुए कुछ अवशेष मिले थे। ये कितने पुराने हैं इनकी जांच के लिए एएसआइ ने इनके तीन सैंपल लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान को भेजे थे। जिनकी रिपोर्ट करीब एक माह पहले एएसआइ के पास आ गई है, जिसमें इन अवशेषों के 3800 साल पुराने होने की पुष्टि की है।


मरने के बाद शव को छोड़ दिया जाता था खुले में


एएसआइ द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार करीब 3800 साल पहले उत्तर वैदिक काल का युग था। उस समय हिन्दू रीति रिवाज में तीन तरह से शव का अंतिम संस्कार किया जाता था। शव को खुले में छोड़ दिया जाता था। जानवरों के खा लेने के बाद बची हुई हड्डियों को नदी में बहाया या जला दिया जाता था। दूसरे में शव को ही जला दिया जाता था। तीसरे में शव को ताबूत में रखकर जमीन में गाड़ दिया जाता था। ताबूत में रखकर जमीन में गाड़ने की परंपरा राजा महाराजाओं में ही होती थी।


सीक्रेट चैंबर भी हुआ है बरामद


सिनौली में एएसआइ को दूसरी बार यहां हुई खोदाई में ताबूतों से कुछ दूरी तक एक आयताकार पक्की मिट्टी का एक हौद मिला था। मगर उस समय इस हौद के बारे में जानकारी नहीं जुटाई जा सकी थी कि इसका उपयोग क्या रहा होगा। मगर लगातार जारी अध्ययन में इस हौद के सीक्रेट चैंबर होने की बात सामने आई है।


जांच में हम महाभारत काल की ओर बढ़ रहे हैं


डॉ. संजय मंजुल (अतिरिक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) का कहना है कि हम यह दावा नहीं कर सकते कि सिनौली में मिले साक्ष्य महाभारत के योद्धाओं के हैं। मगर हम यह जरूर कह रहे हैं जो साक्ष्य मिल रहे हैं वे उसी काल से संबंधित हैं जाे समय हम महाभारत का आंकते हैं। अब कार्बन डेटिंग में भी इस बात की पुष्टि हुई है। हम खोदाई में मिले साक्ष्यों की जांच को आगे बढ़ा रहे हैं। सिनौली में जो साक्ष्य मिले हैं इस तरह के साक्ष्य देश में आज तक किसी खोदाई में नही मिले हैं। खोदाई स्थल के आसपास के क्षेत्र की कराई गई जांच में अभी वहां जमीन में और भी तमाम ताबूत आदि के बारे में पता चला है। भविष्य में इस पर आगे काम किया जाएगा।


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