अभिभावक बच्चों को स्कूल लाने-छोड़ने के लिए तैयार रहें!:खटारा हो गईं 10 हजार स्कूल बसें, सिर्फ 15 हजार ही चलने लायक; नई गाइडलाइन के हिसाब से 50% क्षमता से ही बसें चल सकती हैं

मध्यप्रदेश शासन ने 1 सितंबर से 6वीं से 12वीं तक की स्कूल 50% की क्षमता के साथ सभी दिनों में खोले जाने के निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके बाद स्कूल संचालकों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन अब पेरेंट्स के सामने सबसे बड़ी समस्या ट्रांसपोर्टेशन की है। प्रदेश में करीब 25 हजार स्कूल बसें संचालित होती हैं। इससे बच्चों को लाने ले जाने का काम किया जाता है। इनमें करीब से 10 हजार खटारा हालत में पहुंच गई हैं या जब्ती में चली गई हैं। 15 हजार बसें ही चलने लायक हैं। 1 सितंबर से संभवत: आपको ही बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाना पड़ सकता है। शासन के निर्देश के अनुसार स्कूल बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए 50% क्षमता से ही बच्चों को बसों में बैठाया जा सकेगा। बसों का संचालन करना है, तो करीब 25 हजार बसों की जरूरत पड़ेगी। हकीकत यह है कि 40% बसें यानी 10 हजार से ज्यादा बसें तो चलने की स्थिति में ही नहीं है। वह या तो खराब हो चुकी हूं या फिर फाइनेंस की किस्त नहीं भरने के कारण बैंक द्वारा सीज कर ली गई है। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि बच्चों को स्कूल कैसे ले जाया जाएगा। खुद ले जाएं या फिर अधिक किराया चुकाने के लिए तैयार हो जाएं। पेरेंट्स की परेशानी अगर पेरेंट्स ट्रांसपोर्ट के लिए बस, वैन, टैक्सी या ऑटो की सुविधा लेते हैं, तो उन्हें संभावना है कि पूरा किराया देना पड़ेगा। आधी क्षमता के कारण हो सकता है कि किराया और बढ़ जाए। अगर पेरेंट्स ट्रांसपोर्टेशन नहीं लेते हैं और खुद ही बच्चों को ले जाने जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में उनकी समस्या और बढ़ जाएगी। बसों के संचालन में सबसे बड़ी समस्या करीब दो साल से बसें गैरेज में खड़ी हुई हैं। बसें नहीं चलने के कारण मेंटेनेंस के अभाव में वह कबाड़ हो चुकी हैं। बस संचालकों का कहना है कि अभी तो न किसी भी स्कूल संचालकों और न ही शासन की तरफ से उन्हें कोई निर्देश मिला है। ऐसे में निर्देश मिलने के बाद ही बसों के मेंटेनेंस का काम किया जाएगा। आरटीओ में फिटनेस आदि का विवाद भी अभी जस का तस है। इसका असर यह होगा कि मेंटेनेस कॉस्ट बढ़ने से और 2 साल में डीजल के रेट बढ़ जाने का असर किराये पर पड़ेगा। इसका भार पेरेंट्स पर आएगा। आधी क्षमता के साथ बच्चे को सप्ताह में 3 दिन ही स्कूल आना है। इससे किराए कैसे लिया जाएगा यह भी स्कूल संचालक और बस ऑपरेटरों के लिए बड़ी चुनौती है। दिल्ली पब्लिक स्कूल के संचालक अभिषेक गुप्त का कहना है कि अभी आदेश आया है। हम उसका आकलन कर रहे हैं। बस सर्विस समेत अन्य शर्तों का विश्लेषण किया जाएगा। उसके आधार पर ही पेरेंट्स को सभी चीजें क्लियर करके बताएंगे। जहां तक ट्रांसपोर्टेशन की बात है, तो उस पर पेरेंट्स, ट्रांसपोर्टेशन एसोसिएशन और शासन से मिलकर बात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे। मध्य प्रदेश स्कूल बस एसोसिएशन के अध्यक्ष सरवर ने बताया कि मध्य प्रदेश में करीब 25000 स्कूल बसें संचालित होती हैं। दो साल से बसें खड़ी हुई हैं। ऐसे में आदेश मिलने के बाद मेंटेनेंस का काम शुरू किया जाएगा। बस संचालन को लेकर कई तरह की समस्याएं हैं। जिन पर समिति में चर्चा होगी। हमारा उद्देश्य है कि पेरेंट्स पर ज्यादा भार न पड़े, इसको ध्यान में रखते हुए आगे की चीजें तय की जाएंगी। अभी तक न तो किसी स्कूल में और न ही शासन ने स्कूल बस के संचालन को लेकर संपर्क किया है। लेटर मिलने के बाद हम अपनी तैयारी करेंगे। इसमें शासन को भी कुछ मदद करना होगा। भोपाल स्कूल बस एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील दुबे ने बताया कि भोपाल में करीब 2500 स्कूल बसें संचालित होती हैं। यह संख्या 2 साल पहले की है। अभी वर्तमान में करीब 40% बसें ऑन रोड नहीं हैं। यह या तो खराब हो गई हैं या फिर लोन की किस्त नहीं भरने के कारण सीज की जा चुकी हैं। बसों के संचालन नए सिरे से शुरू करना होगा। ऐसे में बस संचालकों पर इसका बोझ बढ़ेगा, जो किराया बढ़ोतरी के रूप में नजर आएगा।

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