सात पीढ़ियों से चली आ रही:आकर्षक ताजिए बनाने की परंपरा, दो माह की मेहनत से करीब 70 हजार रु. खर्च कर तैयार किया जा रहा ताजिया

मोहर्रम के ताजिए पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हुसैन की शहादत को याद कर निकाले जाते है। मोहर्रम के महीने में वैसे तो ये ताजिये हर जगह बनाए जाते हैं। पूर्व में चांचौड़ा में ताजिए लगभग 30 स्थानों पर बनते थे। लेकिन अब इस दौर में बड़े ताजियों की संख्या कम हो गई है। कुछ महंगाई के दौर ने तो पिछले दो सालों से कोरोना के दौर में ताजिए कम बनाए जा रहे हैं। कस्बे में सबसे आकर्षक ताजिया अली हुसैन गौरी पार्षद बनाते हैं। वे बताते है कि उनके यहां ताजिया बनाने की शुरूआत सात पीढ़ियों से चली आ रही है। जिसकी शुरूआत उनके पुरखे धन्नी भाई से हुई थी। वर्तमान में ताजिया बनाने में विशेष सहयोग चाँद खां, कृष्णगोपाल विश्वकर्मा, बरकत खां, बप्पी सहित अन्य लोगों का रहता है। दो माह की मेहनत और करीब 70 हजार रुपए खर्च कर इस बार भी आकर्षक ताजिया तैयार किया गया है। जिसमें अद्भुत कारीगरी देखने को मिल रही हैं। हर वर्ष नगर परिषद द्वारा सबसे अच्छा ताजिया बनाने वालों को इनाम देकर पुरस्कृत भी करती है।

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