गोल्डन गर्ल की कहानी के मुख्य किरदार पिता प्रवीण लेखरा:क्या बेटी कभी पैरों पर चल सकेगी; यह सोचने वाले पिता की तपस्या से अवनी उड़ान भरने लगी

टोक्यो पैरालिंपिक में स्वर्ण पर निशाना साधने वाली अवनी की कहानी सोमवार को हर जुबां पर थी। आइए! कहानी के एक मुख्य किरदार से आपको रू-ब-रू करवाते हैं। ये हैं अवनी के पिता प्रवीण लेखरा... उन्होंने कार हादसे में बेटी के दोनों पैर निष्प्राण हो जाने के बाद पहाड़-सा दर्द झेला और फिर पहाड़-सा हौसला दिखाते हुए सफलता की इबारत लिखी। पिता प्रवीण बताते हैं- 2012 की महाशिवरात्रि का वो दिन आज भी मुझे झकझोर देता है। राजस्थान सरकार में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में हूं। मेरा ट्रांसफर होने पर हम जयपुर से धौलपुर जा रहे थे। उस दिन हुए कार हादसे ने मेरी बेटी को न केवल पैरालाइज कर दिया बल्कि उसे डिप्रेशन में ला दिया। मैंने दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर यहां तक कि अमेरिका के डॉक्टर्स तक से पता किया, शायद कोई मेरी बेटी को पैरों पर चला दे, लेकिन मैं निराश ही रहा। सब कहते- अभी इसका कोई इलाज नहीं।हां, रिसर्च चल रही है, जब भी इलाज होगा, कोशिश करेंगे। मैं अकसर सोचता था कि क्या बेटी कभी पैरों पर चल नहीं सकेगी? मगर सोचा नहीं था कि अवनी ऐसी उड़ान भरेगी कि सारा हिंदुस्तान उसे सलाम करेगा। उसे डिप्रेशन से निकालना बड़ा काम था। एक-डेढ़ साल तक तो हम उसे छोटे बच्चे की तरह उठना-बैठना सिखाते रहे। फिर व्हीलचेयर पर बैठना सिखाया। अवनी की स्पोट्‌र्स में रुचि देखी शुरुआत में उसे तीरंदाजी के लिए ले गया, लेकिन उसे प्रत्यंचा खींचने में दिक्कत देखी तो 2015 में गर्मियों की छुट्टियों में शूटिंग रेंज ले जाना शुरू कर दिया। वहां उसे लाइट रायफल से प्रैक्टिस शुरू करवाई। डिप्रेशन से उबरने के बाद अवनी रोजाना 7-8 घंटे प्रैक्टिस करने लगी। पिता ने अभिनव बिंद्रा की बायोग्राफी ‘ए शॉट एट हिस्ट्री माई अब्सेसिव जर्नी टू ओलिंपिक गोल्ड’ पढ़ने को दी। उसे पढ़कर मैं काफी मोटीवेट हुई। एक दिन पापा मुझे शूटिंग रेंज ले गए। मैंने वहां एयर राइफल चला कर देखी। मुझे अच्छा लगा। धीरे-धीरे मैं इस गेम में रमने लगी तो पापा ने शूटिंग रेंज के पास ही फ्लैट ले लिया और मुझे रोजाना ट्रेनिंग के ले जाने लगे। धीरे-धीरे अच्छे रिजल्ट आने लगे और मैं राज्य, फिर राष्ट्रीय और उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने लगी। अब तो एक तरह से मेरी लाइफ लाइन बन गई है शूटिंग। इसकी वजह से ही मुझे राजस्थान सरकार में ग्रेड-1 नौकरी भी मिली। पहले मैं घर से बाहर नहीं निकलती थी लेकिन शूटिंग शुरू करने के बाद मुझे बाहर निकलने का मौका मिला और अब मैं पैरालिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हूं। देश को रिप्रेजेंट करना किसी भी खिलाड़ी के लिए गर्व की बात होती है। डांस विनर से गोल्डन गर्ल बनने तक का सफर पिता ने बेंगलुरु से व्हील चेयर और कोल्हापुर से शूटिंग टेबल डिजाइन करवाई। अवनी ने स्कूल लेवल पर जनरल कैटेगरी में व्हीलचेयर पर ही केवीएस रीजनल लेवल स्पोर्ट्स कॉम्पीटिशन, केवीएस नेशनल स्पोर्ट्स व स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया में हिस्सा लेकर तीनों में गोल्ड जीते। इसके बाद 11वीं व 12वीं में वर्ल्ड शूटिंग पैरा स्पोर्ट्स वर्ल्ड कप में हिस्सा लेकर मेडल अपने नाम किया। हादसे के बाद टॉपर अवनी दो साल तक स्कूल ही नहीं गई। घर से ही परीक्षा दी। बाद में केन्द्रीय विद्यालय-3 में एडमिशन कराया। उसके लिए खास रैंप बनाया गया। केवी 3 के प्रिंसिपल राजेश कंथारियां ने बताया कि 11वीं क्लास में अवनी का क्लासरूम ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट किया। घर में ही बना दी 10 मीटर शूटिंग रेंज जगतपुरा शूटिंग रेंज में इलेक्ट्रॉनिक टारगेट की शूटिंग रेंज नहीं थी। पहले अवनी एक निजी स्कूल में प्रैक्टिस के लिए जाती थी। वहां स्पोर्ट्स काउंसिल के कोच चंद्रशेखर उन्हें ट्रेनिंग देते थे। फिर पिता ने घर में भी इलेक्ट्रॉनिक टारगेट लगवा दिए। वहां भी चंद्रशेखर उन्हें कोचिंग देते थे। इलेक्ट्रॉनिक टारगेट पर प्रैक्टिस से अवनी का स्कोर बेहतर होने लगा। इससे पहले चंदन उन्हें ट्रेनिंग देते थे। नेशनल में शूमा सिरूर उनकी पर्सनल कोच बनीं। अवनी ने फाइनल में 249.6 का स्कोर कर यूक्रेन की इरना शेटनिक के 6 दिसंबर 2018 में बनाई वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी की। परफेक्ट 10 से स्कोर 240 होता है, लेकिन शूटिंग में 10.1 से 10.9 तक भी शॉट लगा सकते हैं। मतलब साफ है- अवनी के शॉट परफेक्ट-10 से भी ज्यादा सटीक लगे, तभी वह वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने में सफल रहीं। पैरालिंपिक की पहली महिला गोल्ड मेडलिस्ट बनना चाहती थीं अवनी 19 साल की अवनी का सपना था कि पैरालिंपिक की पहली महिला गोल्ड मेडलिस्ट बनने का। टोक्यो ओलिंपिक के लिए रवाना होने से पहले अवनी ने अपना पापा प्रवीण लेखरा से यह बात कही थी। आज 10 मीटर एयर राइफल में गोल्ड जीतने के बाद जब बेटी की पापा से बात हुई तो उसने अपना गोल्ड मेडल दिखाते हुए कहा, ‘पापा मैंने जो कहा था, वह कर दिखाया। मैंने गोल्ड जीत लिया। अभी मुझे तीन और इवेंट में हिस्सा लेना है इसलिए कोचों ने ज्यादा बात करने के लिए मना किया है। मैं बहुत खुश हूं, आज मेरी गोल्ड जीतने की ख्वाहिश पूरी हो गई।’ परिवार में खुशियां अवनि लेखरा के गोल्ड मेडल जीतने के बाद देश, परिवार और जयपुर में जश्न का माहौल है। शास्त्री नगर स्थित मकान में अवनि के दादा गंगाराम, दादी गुलाब व भाई अर्णव ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई और बधाई दी। भाई ने अवनी से वीडियो कॉल पर बात भी की।

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