पढ़िए उस चुंबक की कहानी जो उठा सकता है जहाज

क्या आपने किसी ऐसे चुंबक के बारे में सुना है, जो एक विमानवाहक जहाज को उठा सकता है? अगर नहीं तो अब जान लीजिए। यह एक खास किस्म का अतिशक्तिशाली चुंबक है जिसे दो अलग-अलग टीमों ने बनाया है। इससे न्यूक्लियर फ्यूजन को एक एनर्जी सोर्स के रूप में डेवलप करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाया जा सकेगा। दुनिया के अलग-अलग कोनों में काम कर रही ये टीमें एक एनर्जी सोर्स को कंट्रोल करने कोशिश कर रही हैं। इस एनर्जी सोर्स का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बहुत इंपॉर्टेंट रोल है। क्या है फिशन बना फ्यूजन नौ सितंबर को दक्षिणी फ्रांस स्थित अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिऐक्टर (आईटीईआर) के वैज्ञानिकों को एक बेहद शक्तिशाली चुंबक का पहला हिस्सा मिला। इसे अमेरिकी कंपनी का दावा है कि वो एक विमानवाहक जहाज तक को उठा सकती है। जब इसके सभी हिस्सों को जोड़ दिया जाएगा तब यह लगभग 60 फुट लंबी होगी। वहीं इसका 14 फुट का व्यास होगा। यह चुंबक न्यूक्लियर फ्यूजन पर पूरी तरह से निपुणता हासिल करने के 35 देशों की कोशिशों का एक बेहद जरूरी हिस्सा है। इसे नाम दिया गया है फिशन बनाम फ्यूजन। इसके अलावा एक और निजी कंपनी ने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के साथ इसी हफ्ते घोषणा की है। इसके मुताबिक उन्होंने दुनिया की सबसे मजबूत ऊंचे तापमान वाली सुपरकंडक्टिंग चुंबक का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। ‘धरती पर सूर्य’ बनाने की रेस इस चुंबक की मदद से यह टीम ‘धरती पर सूर्य’ बनाने की रेस में आईटीईआर को पीछे छोड़ देगी। मौजूदा फिशन रिऐक्टर रेडियोऐक्टिव कचरे का भी उत्पादन करते हैं। कभी-कभी तो उनकी वजह से विनाशकारी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इसके विपरीत फ्यूजन की वकालत करने वालों के मुताबिक इससे बिजली की स्वच्छ और असीमित आपूर्ति मिल सकती है। हां, इसके लिए पहले इसे नियंत्रण में लाना जरूरी है। वैज्ञानिक और इंजीनियर लगभग पिछले 100 साल से इस समस्या पर काम कर रहे हैं। अणुओं के विभाजन की जगह फ्यूजन में एक ऐसी प्रक्रिया की नकल करने की कोशिश की जाती है जो सितारों के अंदर प्राकृतिक रूप से होती है। 2026 तक शुरू करने का टारगेट इसमें हाइड्रोजन के दो अणुओं को मिलाकर हीलियम का एक अणु बनाया जाता है। ऐसा करने पर बड़ी मात्रा में ऊर्जा भी उत्पन्न होती है। लेकिन फ्यूजन हासिल करने के लिए अकल्पनीय मात्रा में गर्मी और दबाव चाहिए होता है। इसे हासिल करने का एक तरीका तो यह है कि हाइड्रोजन को बिजली से चार्ज की हुई एक गैस या प्लाज्मा में बदल दिया जाए। जिसे उसके बाद डोनट के आकार के एक वैक्यूम चेंबर में नियंत्रित कर लिया जाए। 2026 में शुरुआती लक्ष्य के लिए शक्तिशाली सुपरकंडक्टिंग चुंबकों की जरूरत पड़ती है। ऐसे ही एक चुंबक ‘सेंट्रल सोलेनॉयड’ को जनरल एटॉमिक्स कंपनी ने इसी साल गर्मियों के दौरान अमेरिका के सैन डिएगो से फ्रांस भेजना शुरू किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि आईटीईआर अब 75 प्रतिशत पूरा हो चुका है और रिऐक्टर को 2026 की शुरुआत तक चालू कर देना का लक्ष्य रखा गया है। लक्ष्य के हैं बेहद करीब आईटीईआर की प्रवक्ता लबान कोब्लेंट्ज ने बताया कि हर अहम टुकड़े के पूरा होने के साथ हमारा यह विश्वास बढ़ता जाता है कि हम पूरी मशीन की पेचीदा इंजीनियरिंग को पूरा बना सकते हैं। अंतिम लक्ष्य है प्लाज्मा को गर्म करने के लिए जितनी ऊर्जा चाहिए उससे 10 गुना ज्यादा ऊर्जा 2035 तक बना लेना। इससे साबित हो जाएगा कि फ्यूजन तकनीक पॉसिबल है। इस रेस में मैसाचुसेट्स की टीम इस टीम को हरा देने की उम्मीद कर रही है। उसका कहना है कि वो आईटीआर के चुंबकीय क्षेत्र से दोगुना ज्यादा बड़ा क्षेत्र बना चुकी है। ऐसा उसने एक ऐसे चुंबक की मदद से किया है जो आईटीईआर की चुंबक से करीब 40 गुना कम छोटा है। एमआईटी और कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम्स के वैज्ञानिकों ने बताया कि संभव है 2030 के दशक की शुरुआत में ही वो एक ऐसा उपकरण बना लें जिसका रोजमर्रा में इस्तेमाल किया जा सके।

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