MP में न्याय के मंदिर की कहानी:रीवा में 3-3 KM के फासले पर 3 मंदिर, यहां जिला से लेकर सुप्रीम दरबार में होती है मुकदमों की सुनवाई

आपने अदालतों में वकीलों की जिरह सुनी होगी। लोग जिला कोर्ट के आदेश से संतुष्ट नहीं होने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाते हैं, कुछ इसी तर्ज पर रीवा में भगवान की अदालत लगती है। यहां भी जिला दरबार से सुनवाई शुरू होती है। यहां लोग अर्जी लगाते हैं और फैसला दिया जाता है। अगर वे फैसले पर राजी नहीं हैं तो आगे की 'हाईकोट दरबार' और 'सुप्रीम दरबार' में जा सकते हैं। 30 से 40 साल पहले तक यहां काफी संख्या में लोग सुनवाई के लिए आते थे, लेकिन अब यह संख्या बहुत ही कम हो गई है। मामले का फैसला होने पर भक्त भंडारा, भजन, कीर्तन करते हैं। जानिए भगवान के जिला दरबार, हाईकोट दरबार और सुप्रीम दरबार के बारे में…
मंदिर के मुख्य पुजारी टोनी महाराज ने बताया कि चिरहुला नाथ स्वामी को जिला दरबार (जिला न्यायालय) कहा जाता है, हालांकि यहां पर ​आए किसी भी भक्त को निराशा नहीं मिली है, लेकिन अगर किसी को फैसले से शिकायत है तो वह रामसागर हनुमान मंदिर यानी हाईकोट दरबार और फिर खेमसागर हनुमान मंदिर यानी सुप्रीम दरबार में अपनी अर्जी लगा सकता है। सुनवाई के दौरान पुजारी रहते हैं, वे अपना अभिमत देते हैं। इसी आधार पर फैसला होता है। यह फैसला भगवान का माना जाता है। पंडित रामकृष्ण त्रिपाठी ने बताया कि रीवा के तीनों मंदिरों की स्थापना करीब 500 साल पहले चिरौल दास बाबा ने की। मान्यता है कि कलयुग के न्यायधीश खुद बजरंगबली स्वामी हैं, इसीलिए तीनों मंदिर में हनुमान जी की स्थापना की गई थी। चिरहुला मंदिर में स्थापित हनुमान जी को भगवान राम ने चिरकाल तक वास करने के लिए कहा है। तीनों मंदिरों की एक जैसी महानता पंडित बालक दास ने बताया कि चिरहुला नाथ स्वामी सबसे छोटे भाई हैं, जबकि रामसागर दूसरे नंबर के और खेमसागर को सबसे बड़ा भाई कहते हैं। यहां तीनों मंदिर की एक जैसे महानता है। तीनों मंदिर पूर्व मुखी और तीनों मंदिर सरोवर के​ किनारे 3-3 किलोमीटर के फासले पर स्थापित हैं। तीनों मंदिर एक ही सिधाई पर बने हैं। पुजारी टोनी महाराज ने बताया कि मंदिर में अब कभी कभार केस आते हैं, जिनका निपटारा चिरहुला स्वामी करते हैं। यह रिकार्ड मंदिर में दर्ज नहीं होता है। 30 से 40 साल पहले लोग कोर्ट कचहरी और थाने जाने से डरते थे। न ही लोगों के पास भाग-दौड़ के लिए पैसा होता था। तब लोग भगवान की अदालत में अर्जी लगाते थे। विवाद पर फैसला दिया जाता था, जिसे दोनों पक्ष हंसी-खुशी मान लेते थे। जिला प्रशासन कर रहा चिरहुला नाथ मंदिर का संचालन बता दें कि शहर के मध्य में स्थित चिरहुला नाथ मंदिर गुढ़ हाईवे से लगा हुआ है। जिसका संचालन राज्य ​सरकार कर रही। साथ की कलेक्टर को ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया। जिला प्रशासन के हाथ में ही मंदिर के रख-रखाव की जिम्मेदारी है। दर्शन के लिए दिन प्रतिदिन भक्तों की बढ़ रही संख्या को देखते हुए चिरहुला मंदिर को सेफ भोग प्लेस घोषित किया गया है। मंदिर के अंदर और बाहर जिला प्रशासन की निगरानी में प्रसाद व भोग तैयार किया जाता है, जबकि राम सागर और खेम सागर मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी पुजारियों के हाथों में है, जो अपने स्तर पर मंदिर का संचालन करते हैं। मामला निपटा तो एक साल तक रामायण पाठ कराया राम सागर हाईकोर्ट दरबार के मुख्य पुजारी अरूण त्रिपाठी ने बताया कि बीते साल की एक शहर के सज्जन के केस का निपटारा हुआ था। जिनकी एक साल से रामायण पाठ चल रहा। आगामी 31 अगस्त को भंडारे का आयोजन किया गया। अरुण त्रिपाठी ने बताया कि 80 से 90 के दशक के बीच मेरे पिता जी मुख्य पुजारी हुआ करते थे। उस दौरान कई अनोखे केस आए थे। एक केस के बारे में पिताजी ने बताया था कि दो भाइयों के जमीन बंटवारे का केस आया था। जहां बजरंगबली के सामने दोनों की दलील सुनी गई। मंदिर के पुजारियों ने फैसला सुनाया। दोनों को समझाया गया। इसके बाद दोनों में समान रूप से बंटवारा हुआ था। फिर पीड़ित पक्ष ने भगवान के फैसले से खुश होकर कई वर्षों तक मानस का अखंड पाठ कराया था।

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