ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघल रहे हिमालय के ग्लेशियर:2011 तक 1000 वर्ग मीटर की 155 झीलें बनीं; आकार लगातार 2 से 3 गुना बढ़ रहा, कई राज्यों पर मंडराया बाढ़ का संकट

ग्लोबल वॉर्मिंग से हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इससे झीलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। NIT हमीरपुर के प्रो. चंद्र प्रकाश सालों से अपने शोधार्थियों के साथ ग्लेशियर स्टडी कर रहे हैं। उन्होंने कई चौकाने वाले खुलासे किए हैं। पिछले 4 दशक में उच्च हिमालय और पीर पंजाल की रेंज में ग्लेशियर पिघलने से बनी झीलों की संख्या में दोगुना इजाफा हुआ है। साल 1971 में उच्च हिमालय और पीर पंजाल रेंज की चंद्रा, भागा, ब्यास, और पार्वती नदी घाटी में 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल से बड़ी कुल 77 ग्लेशियर झील थीं। साल 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 155 हो गई है। पहले से मौजूद झीलों के आकार में 2 से 3 गुना बढ़ोतरी भी हुई है। कश्मीर, नेपाल, भूटान, तिब्बत और भारत के सिक्किम, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल के क्षेत्रों में लगातार इन झीलों की संख्या बढ़ रही है। झीलों के आकार और संख्या के बढ़ने से इन क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश, ग्लेशियर टूटने और भूस्खलन से झीलों के फटने का खतरा भी बढ़ गया है। डॉ. चंद्र प्रकाश का शोध उच्च हिमालय और पीर पंजाल पर्वत शृंखला की 4 नदी घाटियों पर अधिक केंद्रित है। ग्लेशियर झीलों का यह अध्ययन इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटलाइट डाटा और अमेरिका के साल 1971 में की गई कोरोना एरियल फोटोग्राफ की मदद से किया गया है। चंद्र और भागा बेसिन को व्यास और पार्वती बेसिन से अलग करने वाली पीर पंजाल रेंज भी इस अध्ययन का केंद्र बिंदु रहा है। हालांकि उच्च हिमालय रेंज में पीर पंजाल रेंज के बजाय ग्लेशियर झील का निर्माण पिछले 4 दशक में ज्यादा हुआ है। चंद्रा बेसिन में पिछले 4 दशक में 3 गुना इजाफा पिछले 4 दशक में चंद्रा बेसिन में 3 गुना इजाफा देखने को मिला। साल 1971 में कुल 14 झील इस बेसिन में मौजूद थीं, जो अब बढ़कर 48 हो गई हैं। इस बेसिन में उच्च हिमालय क्षेत्र की सबसे बड़ी दो ग्लेशियर झील मौजूद हैं। समुद्र टापू ग्लेशियर से बनी झील का आकार 1.35 वर्ग किलोमीटर है। इसके अलावा गेपांगघट ग्लेशियर झील का आकार भी पिछले 4 दशक में कई गुना बढ़ गया है। साल 1971 में इसका आकार 0.17 वर्ग किलोमीटर था, जो साल 2003 में 0.5 वर्ग किलोमीटर और साल 2011 में 0.84 वर्ग किलोमीटर हो गया। लगातार आकार के बढ़ने से जहां निकट भविष्य में इन झीलों के फटने से बाढ़ का खतरा बढ़ा है। वहां प्राकृतिक रूप से ही पानी की निकासी होने से खतरा कुछ हद तक टल भी गया है, लेकिन खतरे की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। विश्वभर में 2016 से पहले 1348 ग्लेशियर झील फटीं ,13 हजार की मौत ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघलते ग्लेशियर मानवता के लिए बड़ा खतरा है। विश्वभर में 2016 से पहले 1348 ग्लेशियर झीलों के फटने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं में 13 हजार लोगों की मौत हुई। हिमालय क्षेत्र में कुल 45 घटनाएं इस तरह की हुईं, जिससे नेपाल, भूटान, तिब्बत और भारतीय क्षेत्र में खासा नुकसान देखने को मिला। वहीं अब लगातार बढ़ रही ग्लेशियर की झीलों से एक बड़ा खतरा हिमालय पर्वत शृंखला के देशों के लिए माना जा रहा है। साल 2011 से 2022 तक के ग्लेशियर स्टडी भी जल्द होगी सबके सामने 2011 तक के आंकड़ों के आधार पर किया गया अध्ययन चौंकाने वाला है, लेकिन इससे अधिक चौंकाने वाले खुलासे अगले 10 वर्षों के अध्ययन में हो सकते हैं। इस अध्ययन में भी एनआईटी हमीरपुर के प्रो. चंद्र प्रकाश अपने शोधार्थियों के साथ जुटे हुए हैं। एक अनुमान है कि इन झीलों में पिछले एक दशक में उम्मीदों से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई। ग्लोबल वॉर्मिंग नहीं रुका तो बढ़ सकती है केदारनाथ और चमोली जैसी त्रासदी माना यह भी जा रहा है कि यदि ग्लोबल वॉर्मिंग पर विश्वभर के संगठन और देश कदम नहीं उठाते हैं तो आने वाले दिनों में चमोली और केदारनाथ जैसी कई घटनाएं देखने को मिल सकती हैं। लगातार ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इन से बनने वाली झीलें भी आगामी दिनों में हिमालय क्षेत्र से जुड़े देशों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन सकती हैं। समुद्राटापू और गेपांगघट जैसे ग्लेशियर और इनसे बनी झीलें आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं। प्रो. चंद्र प्रकाश इस विषय पर कहते हैं कि जाहिर तौर पर ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ही यह चुनौती देखने को मिल रही है। आगामी दिनों में अगले एक दशक के अध्ययन पर भी वह और उनके शोधार्थी कार्य कर रहे हैं। उच्च हिमालय और पीर पंजाल के कुछ ग्लेशियर का उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर दौरा और निरीक्षण भी किया है। इस दिशा में और अधिक सजग होने की जरूरत है।

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