भोपाल के मानव संग्रहालय में नई शुरुआत:हर शनिवार-रविवार को स्पेशल डिश, मक्का की रोटी और बैंगन के भरते का स्वाद ले सकेंगे पाएंगे

भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में अब भील जनजाति के पारंपरिक भोजन मक्का की रोटी, बैंगन का भरता, धनिया-लहसुन की चटनी और गुड़ का स्वाद टूरिस्टों को भी चखने को मिलेगा। हर शनिवार और रविवार को यहां स्पेशल डिश बनाई जाएगी। ये बनाने वाले भी भील जनजाति के लोग ही होंगे। मानव संग्रहालय में कोरोना से पहले फूड फेस्टिवल लगते थे, जिसमें भील समेत अन्य जनजातियों के पारंपरिक भोजन का लुत्फ भी देशी-विदेशी टूरिस्ट लेते थे, लेकिन कोरोना की वजह से करीब 2 साल से फूड फेस्टिवल नहीं लग सके हैं। हालांकि, संग्रहालय टूरिस्टों के लिए जुलाई में ही खुल चुके हैं। ऐसे में यहां आने वाले टूरिस्ट भील जनजाति के पारंपरिक भोजन की मांग करते थे। इसलिए अब हर शनिवार-रविवार को यह भोजन मिलेगा। इसलिए शुरुआत की गई संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया, देश-दुनिया के तमाम बड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध से ये साबित भी किया है कि जनजातियों के प्राकृतिक आहार को यदि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपना लें तो पोषक तत्वों की कमी से होने वाले अनेक रोगों की छुट्टी हो सकती है। मक्का की रोटी का सेवन करने से हमारे शरीर को फाइबर प्राप्त होता है, जो पाचन संबंधी समस्याओं से राहत पाने में मदद करता है। यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। साथ ही, फाइबर युक्त आहार लंबे समय तक पेट भरा रखने में मदद करता है, इसलिए संग्रहालय में इसे बनाने की शुरुआत की गई है। ये मिलेगा भोजन में संग्रहालय स्थित कैंटीन इंचार्ज मोहम्मद रेहान ने बताया, 100 रुपए कीमत रखी गई है। इसमें मक्का की दो रोटी, बैंगन का भरता, धनिया-लहसुन की चटनी और गुड़ मिलेगी। भोजन बनाने वाले 4 लोग भील आदिवासी समुदाय के ही हैं। टूरिस्ट उनके हाथों के भोजन का ही स्वाद चखेंगे। पारंपरिक भोजन पसंद करते हैं टूरिस्ट भोपाल के टूरिस्ट गाइड एंड टूर कंसल्टेंट अजय सिंह बताते हैं, भोपाल में हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी टूरिस्ट आते हैं। पारंपरिक भोजन उनकी पहली पसंद होता है। मानव संग्रहालय में यह अच्छी शुरुआत होगी।

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