अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों का दर्द:बोले- न दवा न खाने को पैसे; PM से लगाई अपनों को वापस लाने की गुहार

तालिबान का आतंक आज भी बरकरार है। अफगानिस्तान में आज भी 212 भारतीय फंसे हुए हैं। उनके पास न तो अब काम है और न ही दवा लेने के लिए पैसे हैं। वह काबुल के गुरुद्वारा साहिब में शरण लेकर रह रहे हैं, लेकिन वहां पर उनके लिए लंगर तक समाप्त हो चुका है। अफगानिस्तान से दो महीने पहले आए भारतीय लगातार मांग कर रहे हैं कि उनके परिजनों को वहां से निकाला जाए, मगर उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। अफगानिस्तान से सितंबर माह में भारत आईं 70 साल की कैलाश कौर की जिंदगी का यह पड़ाव बेहद बुरे दौर में गुजर रहा है। वह कहती हैं कि उनके दो बेटे और एक बहू फंसे हुए हैं। वह अपने दो पोतों के साथ यहां पहुंची थीं और उन्हें दिल्ली के तिलक नगर गुरुद्वारा साहिब में ठहराया गया था, मगर बाद में वहां से जाने को बोल दिया गया। वह लुधियाना में अपने रिश्तेदारों के पास आकर रहने लगी हैं, मगर उनके पास यहां कोई काम नहीं है। बेटों से वीडियो कॉल के जरिए बात हो जाती है और वह कहते हैं कि उनका काम पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। उन्हें बाहर जाने से डर लगता है। यही नहीं इनके साथ उनके परिवार के 14 सदस्य भी गुरुद्वारा साहिब में ही रह रहे हैं, जिनमें 12 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं। काबुल में तालिबानी गुरुद्वारा साहिब आते हैं, वह कहते तो कुछ नहीं हैं, मगर काम भी नहीं करने देते हैं। जिस कारण बेहद परेशानी में दिन कट रहे हैं। काबुल में हुए एक धमाके में वह अपना बेटा खो चुकी हैं और यही कारण है कि हर दिन डर के साय में गुजरता है, कहीं उनके परिजनों को बम से ही न उड़ा दिया जाए। पिता हार्ट के मरीज हैं, मगर दवाई को पैसे नहीं भावना लुधियाना में रह रही हैं और उनके पिता हरिंदर सिंह काबुल के गुरुद्वारा साहिब में रह रहे हैं। वह बताती हैं कि पिता हार्ट के मरीज हैं। वीडियो कॉल पर वह उनसे हाल पूछते हुए रो पड़ती हैं और कहती हैं कि आप किसी भी तरह से जल्द पंजाब आ जाओ। वह कहती है कि पिता का आयुवेर्दिक दवाइयों का काम था, जो बंद हो गया है। गुरुद्वारा साहिब में जो कुछ मिलता है, वह खा लेते हैं। खाने के साथ-साथ दवाई के भी लाले पड़े हुए हैं। दिन और रात यही डर सता रहा है कि क्या कभी वह अपने पिता से मिल पाएगी। अफगानिस्तान से भाग गए हैं डाक्टर, नहीं मिल रही दवा प्रिया बताती हैं कि मेरे पापा शाम सिंह शूगर के मरीज हैं और अफगानिस्तान से डॉक्टर भाग निकले हैं। पापा को दवा देने वाला कोई नहीं है। वह लगातार वहां से अपील कर रहे हैं कि उन्हें अफगानिस्तान से निकाला जाए। मगर कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। अब वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से अपील कर रहे हैं कि उनके परिजनों को पंजाब लाकर उन्हें दीपावली का तोहफा दिया जाए। अफगानिस्तान में बिजनेस करने गए थे भारतीय अफगानिस्तान से आए भारतीयों की रिश्तेदार मीना देवी कहती हैं कि ज्यादातर परिवार 1989 में अफगानिस्तान से भारत आकर बस गए थे। मगर बाद में माहौल ठीक हुआ तो वह लोग दोबारा वहां जाकर काम करने लगे। अब उनके कई परिवार वहां रहकर काम कर रहे हैं और यहां पर उनके कई रिश्तेदार भी हैं। वह लोग सर्दी के मौसम में पंजाब आया करते थे और दो से तीन महीने यहां अपने परिवारों के बीच रहकर वापस चले जाते थे। 15 अगस्त को हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से हालात बेहद खराब हो गए हैं। पंजाबी भारतीयों को वहां पर परेशान किया जा रहा है। हम बेहद परेशान हैं, अभी भी अफगानिस्तान में 212 लोग फंसे हुए हैं, जिन्हें वहां से लाया जाना जरूरी है। इसलिए अपील करते हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें वहां से लाने का प्रबंध करें।

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